समाचार ब्यूरो
26/08/2023  :  19:02 HH:MM
अडानी ने लगायी गुजरात ऊर्जा निगम को 3900 करोड़ रुपए की चपत: कांग्रेस
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नयी दिल्ली  - कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार पर भय मुक्त भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने उनके करीबी उद्योगपति मित्र अडानी समूह के हिस्से के 3900 करोड़ रुपए का भुगतान किया है, लेकिन अब इस पैसे को लौटाया नहीं जा रहा है।


गुजरात प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष शक्तिसिंह गोहिल ने शनिवार को यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मोदी सरकार ने अडानी पावर मुंद्रा लिमिटेड के साथ एक ऊर्जा समझौता किया था जिसकी शर्तों का पालन नहीं किया जा रहा है और इस वजह से 3900 करोड़ रुपए की भारी राशि का घोटाला हुआ है।

उन्होंने कहा, “सरकार ने अडानी पावर मुंद्रा लिमिटेड के साथ एक बिजली खरीद समझौता यानी पीपीए किया। इसमें एक शर्त थी कि इंडोनेशिया से जो भी कोयला आएगा, उसके तय मूल्य के आधार पर एनर्जी चार्जेज अडानी पावर मुंद्रा लिमिटेड को दिए जाएंगे। पीपीए में लिखा गया था कि अडानी जो भी कोयला खरीदेंगे, उसकी कॉम्पटिटिव बिड और बिल के कागजात सरकार को देंगे, जिनकी तुलना सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मूल्य तय करने वाले सर्किट से करेगी, लेकिन अडानी पावर मुंद्रा लिमिटेड ने पांच साल तक कोई कागजात नहीं सौंपे और सरकार एनर्जी चार्जेज के नाम पर करोड़ों रुपया देती रही।

कांग्रेस नेता ने कहा, “गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड की ओर से अडानी पॉवर मुंद्रा लिमिटेड को एक चिट्ठी लिखी गई। इसमें कहा गया कि आप हमें दस्तावेज नहीं सौंप रहे हैं, लेकिन हमने पांच साल में आपको 13,802 करोड़ दिए हैं, जबकि हमें आपको केवल 9,902 करोड़ देने थे। चिट्ठी में आग्रह किया गया कि हमने आपको 3,900 करोड़ रुपये ज्यादा दे दिए हैं, उसे आप समय पर लौटा दीजिए।

उन्होंने कहा कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद उच्चतम न्यायालय की कमेटी बनी। इसके बाद कुछ लोगों ने आरटीआई लगाई जिसके कारण गुजरात सरकार ने अडानी पावर लिमिटेड को चिट्ठी लिखी। अगर ऐसा न होता तो गुजरात सरकार के 3,900 करोड़ रुपये अडानी को चले जाते। ये पैसा पीपीए का था इसलिए इसका भार गुजरात के नागरिकों पर पड़ता।

श्री गोविंद ने सरकार से सवाल किया कि यह मनी लॉन्ड्रिंग है तो क्या इसकी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच नहीं कराई जानी चाहिए। सेबी को भी इसकी जांच करनी चाहिए और पांच साल तक 13,802 करोड़ रुपये किसके कहने पर दिए जाते रहे इसकी पड़ताल होनी चाहिए।






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