समाचार ब्यूरो
17/08/2023  :  22:05 HH:MM
बिलकिस: दोषियों की रिहाई की चयन प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट का गुजरात सरकार पर तीखा सवाल
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नई दिल्ली- उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के परिवार के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या से संबंधित मामले में 11 आजीवन कारावास के दोषियों को रिहा करने के लिए अपनाई गई छूट नीति में चयन करने के तौर-तरीके पर गुजरात सरकार से सवाल करते हुए गुरुवार को कहा कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर अनिश्चित स्थिति में है।


न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने गुजरात सरकार से तीखे सवाल किये और सभी संबंधित पक्षों से मामले में सुनवाई की अगली तारीख 24 अगस्त को अपनी-अपनी दलीलें पूरी करने को कहा।

पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू के कानून और नियमों के अनुसार छूट को उचित ठहराने की कोशिश पर गुजरात सरकार से कठिन सवाल पूछे। पीठ कहा कि जहां तक 11 दोषियों को सुधार का अवसर की दलील देकर सजा में छूट देने का सवाल है तो ऐसा सभी को दिया जाना चाहिए, केवल कुछ को नहीं।

पीठ ने श्री राजू से कहा, “छूट की नीति चयनात्मक रूप से क्यों लागू की जा रही है? पुन: शामिल (समाज की मुख्य धारा में) होने और सुधार का अवसर हर दोषी को दिया जाना चाहिए, कुछ को नहीं। सवाल यह है कि सामूहिक रूप से नहीं, लेकिन जहां सजा में छूट के पात्र हैं।

क्या 14 साल के बाद आजीवन कारावास की सजा पाने वाले सभी दोषियों को ऐसे छूट के लाभ के मौके दिये जा रहे हैं।

पीठ ने जेल सलाहकार समिति की संरचना के बारे में भी विवरण मांगा (ऐसी आलोचना थी कि समिति में दो भाजपा विधायक थे)। पीठ ने राजू से यह भी पूछा कि क्या दोषियों की माफी पर जब उनसे राय मांगी गई थी तो क्या केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने भी नकारात्मक राय नहीं दी थी?

गुजरात सरकार ने शीर्ष अदालत के 13 मई, 2022 के फैसले के आधार पर 11 दोषियों को छूट दी थी।

उन दोषियों को सजा में छूट के बाद पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था। इसके बाद भारी सार्वजनिक आक्रोश पैदा हुआ और इसे 'न्याय के साथ क्रूरता' करार दिया गया।

बिलकिस ने दोषियों की सजा में छूट देने के सरकार के फैसले को 2022 के अगस्त में चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक रिट याचिका दायर की थी।

बिलकिस बानो के अलावा, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा, पूर्व सांसद और सीपीआई (एम) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा ने भी फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।






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