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साहितà¥à¤¯ अकादेमी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मनाठजा रहे सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤¤à¤¾ पखवाड़े के अंतरà¥à¤—त आज परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ और साहितà¥à¤¯ विषयक परिसंवाद का आयोजन किया गया। परिसंवाद के मà¥à¤–à¥à¤¯ अतिथि पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ समाजसेवी à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤²à¤ इंटरनेशनल के संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤• विंदेशà¥à¤µà¤° पाठक ने अपनी बात शà¥à¤°à¥‚ करने से पहले हिंदी कवि कà¥à¤à¤µà¤° नारायण à¤à¤µà¤‚ आलोक धनà¥à¤µà¤¾ की परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ संबंधी कविताओं को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करते हà¥à¤ कहा कि पूरे विशà¥à¤µ साहितà¥à¤¯ में पà¥à¤°à¤•ृति को जीवनदायनी के रूप में चितà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया गया है, लेकिन पिछले कà¥à¤› दशकों से पà¥à¤°à¤•ृति का बदला हà¥à¤† रूप हमें उसके संरकà¥à¤·à¤£ के लिठऔर सजग होने की चेतावनी दे रहा है। पà¥à¤°à¤•ृति और परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ à¤à¤• दूसरे के पूरक हैं और उनकी रकà¥à¤·à¤¾ की जानी बेहद जरूरी है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£-सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ के लिठसमाज को दिठगठविकलà¥à¤ªà¥‹à¤‚ की à¤à¥€ विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से चरà¥à¤šà¤¾ की।
विशिषà¥à¤Ÿ अतिथि के रूप में पधारे पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ पतà¥à¤°à¤•ार à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¸à¥‡à¤µà¥€ राहà¥à¤² देव ने कहा कि साहितà¥à¤¯ में पà¥à¤°à¤•ृति तो हमेशा से महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ रही है लेकिन परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ को लेकर इधर कोई विशिषà¥à¤Ÿ रचनाà¤à¤ सामने नहीं आईं। पिछले कà¥à¤› दशकों में परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£à¥€à¤¯ की चिंता बà¥à¥€ तो है लेकिन अà¤à¥€ यह विषय हिंदी साहितà¥à¤¯ में उपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ ही है। अब हमें पà¥à¤°à¤•ृति का निजी सà¥à¤– के लिठनहीं बलà¥à¤•ि उसकी सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ के लिठआगे आकर कारà¥à¤¯ करना होगा। à¤à¤¾à¤°à¤¤ जैसे विकासशील देश के लिठपरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ चेतना का होना अतà¥à¤¯à¤‚त आवशà¥à¤¯à¤• है। पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ लेखिका अलका सिनà¥à¤¹à¤¾ ने कहा कि हमारे साहितà¥à¤¯ में पà¥à¤°à¤•ृति संवाद करती है, लेकिन अब इस संवाद की à¤à¤¾à¤·à¤¾ बदलने की जरूरत है। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ अब हमें पà¥à¤°à¤•ृति को बचाने के लिठजागरूक होना है। साहितà¥à¤¯à¤•ारों के साथ-साथ अब पाठकों को à¤à¥€ सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ और जागरूक होने की जरूरत है। पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸à¥€ संसार पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा के संपादक और गाà¤à¤§à¥€ साहितà¥à¤¯ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨à¤•रà¥à¤¤à¤¾ राकेश पांडेय ने कहा कि अगर साहितà¥à¤¯ में परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ पर कम लिखा गया है तो उसके पà¥à¤¨à¥‡ वाले पाठक à¤à¥€ कम है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कई कवियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ छिनà¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ होते परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ पर लिखी गई कविताओं को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया। कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ साहितà¥à¤¯à¤•ार बी.à¤à¤². गौड़ ने अंत में सà¤à¥€ वकà¥à¤¤à¤¾à¤“ं का धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ देते हà¥à¤ कहा कि पà¥à¤°à¤•ृति का दोहन सीमित होने पर ही परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ हो सकती है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ संबंधी à¤à¤• सà¥à¤µà¤°à¤šà¤¿à¤¤ कविता से अपने वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ का समापन किया।
कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के आरंठमें साहितà¥à¤¯ अकादेमी के सचिव के. शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¿à¤µà¤¾à¤¸à¤°à¤¾à¤µ ने सà¤à¥€ आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ अतिथियों का सà¥à¤µà¤¾à¤—त अंगवसà¥à¤¤à¥à¤°à¤® à¤à¤µà¤‚ साहितà¥à¤¯ अकादेमी की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ें à¤à¥‡à¤‚ट करके किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने सà¥à¤µà¤¾à¤—त वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ में कहा कि साहितà¥à¤¯ सृजन की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ पà¥à¤°à¤•ृति और परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ से ही पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है। अतः अब हमें पà¥à¤°à¤•ृति और परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ की रकà¥à¤·à¤¾ करने के उपाय करने होंगे अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ जो पà¥à¤°à¤•ृति हमें à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ से à¤à¤°à¤¤à¥€ रही है, वह à¤à¤¾à¤µà¤¹à¥€à¤¨ होकर रह जाà¤à¤—ी।
कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® का संचालन अकादेमी के संपादक (हिंदी) अनà¥à¤ªà¤® तिवारी ने किया।
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