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पाकिस्तान के बारे में कहा जाता था कि वहां की राजनीति की कमान तीन ‘ए’ के हाथों में होती है। ये हैंः अल्लाह, आर्मी और अमेरिका। हालांकि अब अमेरिका का स्थान चीन ने ले लिया है लेकिन अल्लाह एवं आर्मी, अर्थात फौज अभी भी वैसी ही शक्तिशाली है। यदि यह कहा जाए कि पाकिस्तान में तो फौज अल्लाह से भी अधिक शक्तिशाली है, तो किसी भी तरह से गलत नहीं होगा। कुल मिलाकर यह कि भले ही चुनाव के माध्यम से कोई भी जीत कर आए और प्रधानमंत्री पद ग्रहण करे लेकिन उसकी कमान भी फौज के ही हाथों में होती है। अगर प्रधानमंत्री ने फौज से जरा भी चूं की, तो उसका पत्ता साफ । बेचारे इमरान खान, उनको पाकिस्तानी राजनीति का यह मौलिक सिद्धांत तो पता ही था, फिर भी वह फौज से चूं कर बैठे। अब फौज जुल्फिकार अली भुट्टो से लेकर नवाज शरीफ तक हर प्रधानमंत्री का जो हश्र करती चली आ रही है, वही इमरान खान का करने जा रही है। कहते हैं कि केवल आसिफ अली जरदारी अकेले प्रधानमंत्री थे जो सत्ता में अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर सके। बाकी जुल्फिकार अली भुट्टो और बेनजीर भुट्टो की तरह या तो मार दिए गए या फिर नवाज शरीफ की तरह जान बचाकर पाकिस्तान छोड़ कर भाग गए।
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