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सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ ही साहितà¥à¤¯ का आधार और सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ है - विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ तिवारी
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में फैंटेसी और साइंस फिकà¥à¤¶à¤¨ लेखन विषयक परिसंवाद संपनà¥à¤¨
जगदà¥à¤—à¥à¤°à¥ रामानंदाचारà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ रामà¤à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ को महतà¥à¤¤à¤° सदसà¥à¤¯à¤¤à¤¾ अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ साहितà¥à¤¯ अकादेमी के साहितà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ के चौथे दिन का मà¥à¤–à¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£ तीन दिवसीय राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ संगोषà¥à¤ ी का शà¥à¤à¤¾à¤°à¤‚ठथा, जो ‘à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® पर साहितà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µâ€™ विषय पर केंदà¥à¤°à¤¿à¤¤ है। संगोषà¥à¤ ी का उदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¨ वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ देते हà¥à¤ पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ हिंदी कवि, समालोचक à¤à¤µà¤‚ अकादेमी के महतà¥à¤¤à¤° सदसà¥à¤¯ विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ तिवारी ने कहा कि सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ मानवीय शबà¥à¤¦à¤•à¥‹à¤¶ का सबसे पवितà¥à¤° शबà¥à¤¦ है। उसकी चेतना, मनà¥à¤·à¥à¤¯ ही नहीं जीव मातà¥à¤° में नैसरà¥à¤—िक रूप से विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ होती है। वह मनà¥à¤·à¥à¤¯ का चरम मूलà¥à¤¯ है। दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤° के मनà¥à¤·à¥à¤¯ ने सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ के लिठजितने बलिदान दिठहैं, शायद ही किसी अनà¥à¤¯ मूलà¥à¤¯ के लिठदिठहों। सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ ही साहितà¥à¤¯ का à¤à¥€ आधार और सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ है। दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का अधिकांश साहितà¥à¤¯ उसी की अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ है। आगे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ आंदोलन के साथ-साथ जो साहितà¥à¤¯ लिखा जा रहा था, वह अधिकांशतः उससे पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ à¤à¥€ था और उसे पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ à¤à¥€ कर रहा था। हिंदी में जिसे छायावाद काल कहा जाता है उसे ‘सतà¥à¤¯à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ यà¥à¤—’ à¤à¥€ कहा गया है। अपनी बात आगे बà¥à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि हिंदी ही नहीं, उस समय का संपूरà¥à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ साहितà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ की चेतना से आंदोलित था और उसे पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ तथा गतिशील कर रहा था।अपने बीज वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ में पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ लेखक हरीश तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤¦à¥€ ने कहा कि सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® पर साहितà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त, अनà¥à¤¤à¤°à¤‚ग किंतॠसूकà¥à¤·à¥à¤® और सà¥à¤¥à¤¾à¤¯à¥€ था। उस समय के राजनीतिजà¥à¤ž जो लिख रहे थे वह सृजनातà¥à¤®à¤• साहितà¥à¤¯ तो नहीं था लेकिन उसका पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ किसी कविता या कहानी से कम पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ करने वाला नहीं था और उस समय उसकी ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ज़रूरत थी। साहितà¥à¤¯ अकादेमी के अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र कंबार ने अपने वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ में कहा कि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® का आंदोलन पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से अलग और अनोखा था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इसमें कोई सेना शामिल नहीं थी बलà¥à¤•à¤¿ यहाठकी आम जनता और साधू संतों से लेकर सà¤à¥€ शामिल थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वाचिक साहितà¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपनी बात दूर-दूर तक पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤ˆ और साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ ने अपनी वाणी से इस आंदोलन को आगे बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठअपने शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ किया। साहितà¥à¤¯ अकादेमी के उपाधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· माधव कौशिक ने कहा कि लेखकों का काम देश को आजादी दिलाने के बाद à¤à¥€ खतà¥à¤® नहीं हà¥à¤† बलà¥à¤•à¤¿ अब परिदृशà¥à¤¯ और जटिल हà¥à¤† है तथा लेखकों को ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ संघरà¥à¤· करने की ज़रूरत है। आज संगोषà¥à¤ ी में तीन अनà¥à¤¯ सतà¥à¤° नंदकिशोर आचारà¥à¤¯, दामोदर मावज़ो और चंदà¥à¤°à¤•à¤¾à¤‚त पाटिल की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ में संपनà¥à¤¨ हà¥à¤à¥¤à¤‡à¤¸à¥€ दिन अपराहà¥à¤¨ 2.30 बजे 1947 के बाद ‘à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में फैंटेसी और साइंस फिकà¥à¤¶à¤¨ लेखन’ विषयक परिसंवाद का आयोजन हà¥à¤†, जिसमें देवेंदà¥à¤° मेवाड़ी ने उदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¨ वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ देते हà¥à¤ कहा कि आज साहितà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ नज़दीक आ रहे हैं। आगामी समय विजà¥à¤žà¤¾à¤¨-साहितà¥à¤¯ का होगा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि आज़ादी के बाद से फैंटेसी और विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ कथा-साहितà¥à¤¯ बहà¥à¤¤ तेज़ी से लिखा जा रहा है। साहितà¥à¤¯ की मूलधारा के लेखकों ने à¤à¥€ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ कथा-साहितà¥à¤¯ का लेखन किया है। परिसंवाद के विचार सतà¥à¤° की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ कशà¥à¤®à¥€à¤°à¥€ लेखक ज़मां आज़à¥à¤°à¥à¤¦à¤¾ ने की तथा रजत चौधà¥à¤°à¥€ (अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€), जोसेफ तà¥à¤¸à¤•à¤¾à¤¨à¥‹ (मराठी), कमलाकांत जेना (ओड़िआ), जरà¥à¤¨à¤¾à¤¦à¤¨ हेगडे (संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤) और इरा. नटरासन (तमिऴ) ने अपने आलेख पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किà¤à¥¤
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