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देहरादून - पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ नरेनà¥à¤¦à¥à¤° मोदी की ओर से
मोटा अनाज (मिलेटà¥à¤¸) को à¤à¤¾à¤°à¤¤ ही नहीं, अपितॠविशà¥à¤µ पटल पर पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ करने और
इस वरà¥à¤· को अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ मोटा अनाज वरà¥à¤· (इंटरनेशनल मिलेटस ईयर) घोषित होने के
मधà¥à¤¯ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में à¤à¤• अà¤à¤¿à¤¨à¤µ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— सामने आया है। यह अà¤à¤¿à¤¨à¤µ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— मिलेटà¥à¤¸ से
मिठाई बनाने का। जिसकी शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ की है उतà¥à¤¤à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¥€ जिले के नागथली मणि गांव के दयाल
सिंह कोतवाल ने। जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पहाड़ के मोटे अनाज कोदा, à¤à¤‚गोरा, मंडà¥à¤µà¤¾, कौणी, मारà¥à¤¶à¤¾, चà¥à¤•à¤‚दर और लौकी की बरà¥à¤«à¥€ और अनà¥à¤¯ मिठाई
बनाकर, पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में
à¤à¤• नया इतिहास रचा है।
कà¤à¥€ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ का अंग रहे इस हिमाचली राजà¥à¤¯ को बनाने के लिठशà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤
जनांदोलनों में ‘कोदा à¤à¤‚गोरा
खायेंगे, उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड
बनाà¤à¤‚गे’ का नारा जन जन
की जà¥à¤¬à¤¾à¤¨ पर था। राजà¥à¤¯ गठन का वह सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ तो साकार हà¥à¤† ही, कोदा, à¤à¤‚गोरा को
राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ ही नहीं, अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯
पहचान à¤à¥€ मिल गई।
पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ के डà¥à¤°à¥€à¤® पà¥à¤°à¥‹à¤œà¥‡à¤•à¥à¤Ÿ नमामि गंगे में गंगा विचार मंच के पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤
संयोजक समाजसेवी लोकेनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह बिषà¥à¤Ÿ ने अपने à¤à¤• यातà¥à¤°à¤¾ वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त का जिकà¥à¤° करते
हà¥à¤ यूनीवारà¥à¤¤à¤¾ को बताया कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हाल ही में उतà¥à¤¤à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¥€ से देहरादून जाते समय
चिनà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥€à¤¸à¥Œà¤¡à¤¼, कà¥à¤®à¤°à¤¾à¤¡à¤¼à¤¾ मारà¥à¤—
पर छोटे से सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ नागथली मणि में à¤à¤• दà¥à¤•à¤¾à¤¨ पर चाय पीने रà¥à¤•à¥‡à¥¤ वहां मिठाई के
काउंटर पर सजी मिठाइयों पर उनके नाम के बोरà¥à¤¡ लगे थे। वह उन पर लिखे नामों जैसे कोदा
की बरà¥à¤«à¥€, à¤à¤‚गोरा की बरà¥à¤«à¥€, लौकी की बरà¥à¤«à¥€, चà¥à¤•à¤‚दर की बरà¥à¤«à¥€
के साइन बोरà¥à¤¡ देखकर हतपà¥à¤°à¤ रह गà¤à¥¤
शà¥à¤°à¥€ बिषà¥à¤Ÿ बताते हैं कि इस दà¥à¤•à¤¾à¤¨ में इनà¥à¤¹à¥€ मोटे अनाज से बनी मिठाइयों से सजी
थी। लोग à¤à¥€ आ रहे थे और इन मोटे अनाज से बनी मिठाइयों को खरीद à¤à¥€ रहे थे और मौके
पर बड़े चाव से लोग खा à¤à¥€ रहे थे। वह बताते हैं कि जब उतà¥à¤¸à¥à¤•à¤¤à¤¾à¤µà¤¶ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इन मोटे
अनाज से बनी मिठाई के बारे में दà¥à¤•à¤¾à¤¨ के मालिक दयाल सिंह कोतवाल से बात की तो
उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इनके बारे में विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से बताया।
समाजसेवी शà¥à¤°à¥€ बिषà¥à¤Ÿ ने शà¥à¤°à¥€ कोतवाल के हवाले से बताया कि कोरोनाकाल में जब
उनकी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ बंद हो गई, तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने
विचार किया कि आजतक पहाड़ के लोग मोटे अनाज को केवल à¤à¥‹à¤œà¤¨ के रूप में खाने तक ही
सीमित हैं। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न इसकी मिठाई बनाई जाय। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— के तौर पर पहले घर और
गांव में ही मोटे अनाज की मिठाई बनाकर लोगों को खिलाई। लोगों को पसनà¥à¤¦ आने और
अचà¥à¤›à¤¾ पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ मिलने पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लॉकडाउन खतà¥à¤® होने पर अपनी मिठाई की दà¥à¤•à¤¾à¤¨ में
मोटे अनाज की मिठाई बनाकर बेचना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया।
शà¥à¤°à¥€ कोतवाल ने साफगोई से बताया कि, मिलेटस यानी कोदा, à¤à¤‚गोरा, मंडà¥à¤µà¤¾ की बरà¥à¤«à¥€
बनाने का कोई अलग फारà¥à¤®à¥‚ला नहीं है। दूसरी मिठाइयों की तरह ही इसको बनाया जाता है।
यह पूरी तरह रसायनमà¥à¤•à¥à¤¤ यानी कैमिकल फà¥à¤°à¥€ होती है। यह अलग बात है कि चीनी में यदि
कोई रासायन होगा तो वह इसमें à¤à¥€ होगा। उनके अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, शà¥à¤¦à¥à¤§ देसी घी से बनी मोटे अनाज की
मिठाई की कीमत बढ़ जाती है, इसलिठवे
रिफाइंड का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते हैं। ऑरà¥à¤¡à¤° मिलने पर देशी घी की मिठाई à¤à¥€ बनाई जाती है।
देश à¤à¤° में आयोजित हो रही जी-20 की बैठकों में à¤à¥€ आजकल उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के
मोटे अनाज को à¤à¥‹à¤œà¤¨ में विशेष रूप से अतिथियों के लिठपरोसा जा रहा है। à¤à¤¸à¥‡ में
नागथली मणि गांव के दयाल सिंह कोतवाल की बनी इन मिठाइयों को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर, अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯
सà¥à¤¤à¤° पर इस नठपà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— को à¤à¤• नया मà¥à¤•à¤¾à¤® मिल सकेगा।
उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय है कि उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में à¤à¤‚गोरा को सामानà¥à¤¯ चावल की तरह खाने की रिवाज
थी। बाद में इसकी खीर लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ और पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हो गई। à¤à¤‚गोरा की खीर गांव की थाली से
होकर बाजार के होटलों से होते हà¥à¤ फाइव सà¥à¤Ÿà¤¾à¤° तक पहà¥à¤‚च गई। शादी समारोह और
पारà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में मोटे अनाज से बने खादà¥à¤¯ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ डिश हो गà¤à¥¤ कंडाली की सबà¥à¤œà¥€, कोदे की रोटी, गहत का गहतवाणी
अथवा सूप, गहत का फाणू
किसी à¤à¥€ समारोह में सà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿà¤¸ सिंबल बन गया है। गरीब पहाड़ी गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ की थाली से मोटा
अनाज आज पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ नरेंदà¥à¤° मोदी की थाली तक जा पहà¥à¤‚चा।
गौरतलब है कि देश में जà¥à¤µà¤¾à¤°, बाजरा, रागी (मडà¥à¤†), जौ, कोदो, à¤à¤‚गोरा, कौणी, मारà¥à¤¶à¤¾, चीणा, सामा, बाजरा, सांवा, लघॠधानà¥à¤¯ या
कà¥à¤Ÿà¤•à¥€, कांगनी और चीना
फसलों को मोटे अनाज के तौर पर जाना जाता है। आदिकाल से पहाड़ में मोटे अनाज की
à¤à¤°à¤®à¤¾à¤° हà¥à¤† करती थी। लेकिन तब मोटे अनाज को खाने वालों को दूसरे दरà¥à¤œà¥‡ का समà¤à¤¾ जाता
था। उस समय मोटे अनाज की उपयोगिता और इसके गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से लोग जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ विंजà¥à¤ž नही थे।
जानकारी का à¤à¥€ अà¤à¤¾à¤µ था।। समय के साथ साथ मोटे अनाज की पैदावार à¤à¥€ कम होने लगी, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि लोगों
ने मोटे अनाज की जगह दूसरी फसलों को तबजà¥à¤œà¥‹ देना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया और समाज की धारणा के
अनà¥à¤¸à¤¾à¤° लोग चावल धान की फसल की ओर बढ़ गà¤à¥¤ समय फिर लौट के आया और सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯
के लिठमोटे अनाज के à¤à¤°à¤ªà¥‚र गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से लोग परिचित हà¥à¤à¥¤ सेहत के लिठसà¤à¥€ तरह से
फायदेमंद होने व लाइलाज बीमारी के इलाज में मोटे अनाज का सेवन रामबाण साबित होता
है। इसलिठफिर से बाजार में इस पहाड़ी मोटे अनाज की à¤à¤¾à¤°à¥€ मांग होने लगी है। बाजार
में मोटे अनाज की डिमांड मांग जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ होने लगी तो मोटा अनाज फिर से खेतों में
लौटने लगा। गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ à¤à¥€ मोटे अनाज की फसलों को उगाने में रà¥à¤šà¤¿ दिखाने लगे हैं। आज
पहाड़ों के बाजार से मोटा अनाज पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करना à¤à¥€ अपनेआप में à¤à¤• चमतà¥à¤•à¤¾à¤° है। बाजार
में मोटा अनाज कम और मांग जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ है।
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