वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ ने à¤à¤• अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ में पाया है कि वायॠपà¥à¤°à¤¦à¥‚षण के चलते पराग कणों की सघनता पर असर पड़ा है और अलग-अलग पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पराग कणों पर मौसम में होने वाले परिवरà¥à¤¤à¤¨ का à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ देखने को मिल है।
पराग हवा में घà¥à¤²à¥‡ रहते हैं और हवा के उस हिसà¥à¤¸à¥‡ में मिल जाते हैं जिसे हम सांस के जरिठलेते हैं। यह सांस के जरिठमानव शरीर में पहà¥à¤‚चते हैं और ऊपरी शà¥à¤µà¤¸à¤¨ तंतà¥à¤° में जाकर तनाव पैदा कर देते हैं। इन पराग कणों के करण ऊपरी शà¥à¤µà¤¸à¤¨ तंतà¥à¤° में नाक से लेकर फेफड़ों तक तरह-तरह की à¤à¤²à¤°à¥à¤œà¥€ हो जाती है, जिससे असà¥à¤¥à¤®à¤¾, मौसमी समसà¥à¤¯à¤¾à¤à¤‚ और शà¥à¤µà¤¾à¤¸ संबंधी अनà¥à¤¯ समसà¥à¤¯à¤¾à¤à¤‚ पैदा हो जाती हैं।
अलग-अलग मौसम संबंधी या परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£à¥€à¤¯ परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के कारण वायà¥à¤œà¤¨à¤¿à¤¤ पराग à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से दूसरे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ होते हैं। हाल के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨à¥‹à¤‚ में इस बात के साफ-साफ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ मिले हैं कि शहरी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में हवा में घà¥à¤²à¥‡ पराग à¤à¤²à¤°à¥à¤œà¥€ संबंधी बीमारियों को बढ़ाने में महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हैं। पराग, जलवायॠपरिवरà¥à¤¤à¤¨ और वायॠपà¥à¤°à¤¦à¥‚षकों के साथ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में सह-असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में रहते हैं, अलग-अलग पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पराग पारसà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• संपरà¥à¤• में आकार मानव सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ पर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥‚ल पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ डालने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ वाले होते हैं।
इस विषय पर पोसà¥à¤Ÿ गà¥à¤°à¥‡à¤œà¥à¤à¤Ÿ इंसà¥à¤Ÿà¥€à¤Ÿà¥à¤¯à¥‚ट ऑफ मेडिकल à¤à¤œà¥à¤•à¥‡à¤¶à¤¨ à¤à¤‚ड रिसरà¥à¤š (पीजीआईà¤à¤®à¤ˆà¤†à¤°), चंडीगढ़ के पà¥à¤°à¥‹. रवींदà¥à¤° खैवाल, परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ विà¤à¤¾à¤— की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· डॉ. सà¥à¤®à¤¨ मोर और पीà¤à¤š.डी. रिसरà¥à¤š सà¥à¤•à¥‰à¤²à¤° सà¥à¤¶à¥à¤°à¥€ अकà¥à¤·à¥€ गोयल ने चंडीगढ़ शहर के वायà¥à¤œà¤¨à¤¿à¤¤ पराग पर मौसम और वायॠपà¥à¤°à¤¦à¥‚षकों के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ किया। समूह ने हवा में बनने वाले पराग पर तापमान, वरà¥à¤·à¤¾, सापेकà¥à¤·à¤¿à¤• आरà¥à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤¾, हवा की गति, हवा की दिशा और आस-पास मौजूद वायॠपà¥à¤°à¤¦à¥‚षक कणों विशेष रूप से पारà¥à¤Ÿà¥€à¤•à¥à¤²à¥‡à¤Ÿ मैटर और नाइटà¥à¤°à¥‹à¤œà¤¨ ऑकà¥à¤¸à¤¾à¤‡à¤¡ के संबंधों का पता लगाया।
इस अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ के लिठवितà¥à¤¤à¥€à¤¯ मदद à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार के विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¥Œà¤¦à¥à¤¯à¥‹à¤—िकी विà¤à¤¾à¤— (डीà¤à¤¸à¤Ÿà¥€) दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उपलबà¥à¤§ कराई गई है और यह à¤à¤¾à¤°à¤¤ में अपनी तरह का पहला अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ है जिसमें वायà¥à¤œà¤¨à¤¿à¤¤ पराग पर मौसम संबंधी बदलावों तथा पà¥à¤°à¤¦à¥‚षण के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ को समà¤à¤¨à¥‡ का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया गया है। इस अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ को à¤à¤²à¥à¤¸à¥‡à¤µà¤¿à¤¯à¤° की à¤à¤• पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾, साइंस ऑफ द टोटल à¤à¤¨à¤µà¤¾à¤¯à¤°à¤¨à¤®à¥‡à¤‚ट में हाल ही में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किया गया है।
इस अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से यह पता चलता है कि मौसम की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ और वायॠपà¥à¤°à¤¦à¥‚षकों का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ अलग-अलग पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पराग पर अलग-अलग होता है। अधिकांश पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पराग वसंत और शरद ऋतॠमें बनते हैं जब फूलों के खिलने का मौसम होता है। वायॠजनित पराग सबसे अधिक मातà¥à¤°à¤¾ में उसी समय बनते हैं जब मौसम की अनà¥à¤•à¥‚ल सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ होती है, जैसे मधà¥à¤¯à¤® तापमान, कम आरà¥à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤¾ और कम वरà¥à¤·à¤¾à¥¤ यह à¤à¥€ देखा गया है कि मधà¥à¤¯à¤® तापमान की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¨, पà¥à¤·à¥à¤ªà¤•à¥à¤°à¤®, परिपकà¥à¤µà¤¤à¤¾, पराग विमोचन और पà¥à¤°à¤•à¥€à¤°à¥à¤£à¤¨ में महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤¤à¥€ है। इसके विपरीत अधिक वरà¥à¤·à¤¾ और उचà¥à¤š सापेकà¥à¤· आरà¥à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤¾ के दौरान वातावरण से पराग कण साफ हो जाते हैं।
वायà¥à¤œà¤¨à¤¿à¤¤ पराग कणों का वायॠपà¥à¤°à¤¦à¥‚षकों के साथ जटिल और असà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ संबंध पाया गया है। वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•, पà¥à¤°à¤¦à¥‚षण कणों और पराग कणों के पारसà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• संबंधों को और सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ करने के लिठदीरà¥à¤˜à¤•à¤¾à¤²à¤¿à¤• डेटा सेट तैयार करने तथा उसकी जांच करने की योजना बना रहे हैं।
पà¥à¤°à¥‹. रवींदà¥à¤° खैवाल ने à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में बदलती जलवायॠके संदरà¥à¤ में इस बात पर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ डाला कि शहरी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में पौधों के जैविक और फेनोलॉजिकल मापदंडों को जलवायॠपरिवरà¥à¤¤à¤¨ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ रूप से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ करेगा।
इस अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ के निषà¥à¤•à¤°à¥à¤· उपयोगी हैं और इससे इस परिकलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ को बल मिलता है कि वायॠपà¥à¤°à¤¦à¥‚षक पराग की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ करते हैं तथा à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में à¤à¤¸à¥‡ विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨à¥‹à¤‚ की मदद से इसके बारे में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ और सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हो सकेंगी।
वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ के निषà¥à¤•à¤°à¥à¤· वायॠजनित पराग, वायॠपà¥à¤°à¤¦à¥‚षकों और जलवायॠकारणों के पारसà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• संबंधों को समà¤à¤¨à¥‡ में सहायक होंगे जिससे गंगा के मैदानी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में परागण के दà¥à¤·à¥à¤ªà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ को कम करने के लिठनीतियाठतैयार करने में सहायता मिल सकेगी और बीच जटिल बातचीत की समठमें सà¥à¤§à¤¾à¤° करने में मदद कर सकते हैं। इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° को देश के सबसे अधिक पà¥à¤°à¤¦à¥‚षित कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के रूप में चिहà¥à¤¨à¤¿à¤¤ किया गया है, विशेष रूप से अकà¥à¤Ÿà¥‚बर और नवंबर के महीनों के दौरान गंगा के मैदानी à¤à¤¾à¤—ों में वायॠपà¥à¤°à¤¦à¥‚षण अपने चरम पर पहà¥à¤à¤š जाता है।