समाचार ब्यूरो
29/01/2022  :  11:20 HH:MM
केंद्र सरकार ने 'केज एक्वाकल्चर इन रिजर्वायर : स्लीपिंग जायंट्स' पर वेबिनार का आयोजन किया
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“आजादी का अमृत महोत्सव” के तहत भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग ने 'केज एक्वाकल्चर इन रिजर्वायर : स्लीपिंग जायंट्स' विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता भारत सरकार (जीओआई) के मत्स्यपालन विभाग (डीओएफ) में सचिव श्री जतिन्द्र नाथ स्वैन ने की और इसमें लगभग 100 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इनमें भारत सरकार के मत्स्य पालन विभाग के अधिकारी व विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मत्स्यपालन अधिकारी, राज्य कृषि, पशु चिकित्सा व मत्स्यपालन विश्वविद्यालयों के शिक्षक और पूरे देश के जलीय कृषि उद्योग के उद्यमी, वैज्ञानिक, किसान, हैचरी के मालिक, छात्र और हितधारक शामिल हैं।

इस वेबिनार की शुरुआत मत्स्यपालन विभाग (डीओएफ) के मत्स्यपालन विकास आयुक्त श्री आई. ए. सिद्दीकी के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने इस वेबिनार की विषयवस्तु व चर्चा के लिए पैनल में शामिल विशिष्ट पैनलिस्ट - सचिव श्री जतिंद्र नाथ स्वैन, संयुक्त सचिव (अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी) और आईसीएएआर-केंद्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) के निदेशक डॉ. बी.के. दास के साथ अन्य प्रतिभागियों का परिचय दिया।

केंद्रीय मत्स्यपालन सचिव श्री स्वैन ने अपने उद्घाटन भाषण में मत्स्यपालन क्षेत्र के विकास के लिए जलाशयों और केज एक्वाकल्चर (पिंजड़ा मत्स्यपालन) के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने आगे अच्छा लाभ सुनिश्चित करने के लिए किसानों को संभावित बाजारों सहित जलाशयों में मजबूत पिंजरा पालन प्रणाली (केज कल्चर सिस्टम) को अपनाने की सलाह दी। श्री स्वैन ने इससे संबंधित पूरे विश्व और देश में सफलता की कहानियों के उदाहरणों को रेखांकित किया। श्री स्वैन ने वैज्ञानिकों और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मत्स्य विभाग से लाभ बढ़ाने, लागत कम करने, प्रजातियों के विविधीकरण और जलाशयों में पिंजरा पालन प्रणाली के जरिए उत्पादन व उत्पादकता में बढ़ोतरी के लिए नीतियों के साथ-साथ मत्स्यपालन करने वाले किसानों को प्रेरित करने और अभिनव तरीके विकसित करने का भी अनुरोध किया।

संयुक्त सचिव (अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी) श्री सागर मेहरा ने अपने उद्घाटन भाषण में पिंजरा जैसे घेरे का उपयोग करके मत्स्य उत्पादन को बढ़ाने में जलाशय मात्स्यिकी और मत्स्यपालन की महत्वपूर्ण भूमिका को संक्षेप में बताया। उन्होंने आगे कहा कि पिंजड़े की प्रणाली जल निकायों की प्राकृतिक उत्पादकता का कुशलतापूर्वक उपयोग करती हैं और यह आर्थिक, सामाजिक और वातारण की दृष्टि से व्यवहार्य है। भारत सरकार के à¤®à¤¤à¥à¤¸à¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤²à¤¨ विभाग ने अपनी प्रमुख योजना प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत केज एक्वाकल्चर को बढ़ावा देने के लिए निवेश के लक्ष्य निर्धारित किए हैं।

वहीं, तकनीकी सत्र के दौरान आईसीएएआर-केंद्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) के निदेशक डॉ. बी. के. दास ने "'केज एक्वाकल्चर इन रिजर्वायर : स्लीपिंग जायंट्स" विषयवस्तु पर एक व्यापक प्रस्तुति दी। उन्होंने आगे किसानों व हितधारकों के लिए विभिन्न कौशल और क्षमता विकास कार्यक्रमों के साथ-साथ देश के विभिन्न हिस्सों में केज एक्वाकल्चर के विविधीकरण के लिए आईसीएआर-सीआईएफआरआई विकसित विभिन्न तकनीक, अवसर और गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। डॉ. दास ने अच्छी प्रबंधन अभ्यासों के पालन और सहायता सेवाएं प्रदान करके देश के जलाशयों में केज एक्वाकल्चर को बढ़ावा देने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि सीआईएफआरआई घेरावयुक्त मत्स्यपालन की विभिन्न संभावनाओं के लिए तकनीकी पृष्ठभूमि की जानकारी देकर सहायता करने के लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है।

इस वेबिनार में प्रस्तुति के बाद मत्स्यपालन करने वाले किसानों, उद्यमियों, हैचरी मालिकों, छात्रों, वैज्ञानिकों और विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के साथ एक ओपन चर्चा सत्र आयोजित किया गया। इस चर्चा के बाद विभाग के सहायक आयुक्त डॉ. एस. के. द्विवेदी के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ वेबिनार का समापन हुआ।






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