समाचार ब्यूरो
21/01/2022  :  13:43 HH:MM
खिलौना आधारित शिक्षण पद्धति एनईपी 2020 और प्रधानमंत्री के 'वोकल फॉर लोकल' के दृष्टिकोण के अनुरूप है - डॉ. राजकुमार रंजन सिंह
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खिलौने और खेल खेलने, बनाने और सीखने पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि, शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. राजकुमार रंजन सिंह ने कहा कि खिलौना आधारित शिक्षण पद्धति एनईपी 2020 और प्रधानमंत्री के 'वोकल फॉर लोकल' के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
श्री सिंह ने बच्चों के बौद्धिक विकास और उनमें रचनात्मकता पैदा करने और समस्या को सुलझाने के कौशल को निखारने में खिलौनों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सीखने-सिखाने के संसाधन के रूप में खिलौनों में अध्यापन कला को बदलने की क्षमता है और खिलौना आधारित शिक्षण का उपयोग माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को सिखाने के लिए आसानी से किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि खिलौने हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत को समझने में मदद करते हैं और बौद्धिक व भावनात्मक विकास को मजबूती प्रदान करते हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह अंतरराष्ट्रीय वेबिनार हमारे देश के आत्मनिर्भर होने की यात्रा को सुगम बनाएगा और देश के आर्थिक विकास में योगदान देगा।

श्रीमती अनीता करवाल, सचिव, स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय ने उन लोगों को धन्यवाद दिया जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय वेबिनार के आयोजन में मदद की। उन्होंने आगामी एनसीएफ में खिलौना आधारित शिक्षण शुरू करने की भूमिका का उल्लेख किया जैसा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कल्पना की है। उन्होंने भारतीय परंपरा में खिलौनों और खेलों के महत्व पर ध्यान आकर्षित किया और शतरंज या चेस जैसे खेलों को लेकर चिंता जताई, जो भारत से शुरू हुए और अब भारतीय बच्चे उससे पकड़ खो रहे हैं। उन्होंने एनईपी 2020 का संदर्भ प्रस्तुत करते हुए कहा कि इसमें बुनियादी और प्रारंभिक वर्षों के लिए खेल आधारित शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है। उन्होंने एनईपी 2020 के अन्य पहलुओं पर भी जोर दिया: गणित पढ़ाने के लिए पहेलियों और खेलों का उपयोग; पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति को भारतीय संस्कृति के लोकाचार से जोड़ना, बच्चों की अनूठी क्षमता को सामने लाना आदि। उन्होंने शिक्षा प्रणाली में खिलौना आधारित शिक्षण कला को शुरू करने के प्रयास का भी उल्लेख किया: एनईपी 2020 में उल्लिखित 'स्कूल तैयारी मॉड्यूल' का विकास, जो पूरी तरह से बच्चों की गतिविधियों, खेलों और खिलौने बनाने पर आधारित है जिससे उनमें रचनात्मकता, गहराई से सोचने की क्षमता, 21वीं सदी के कौशल व दक्षता विकसित हो सके।

उन्होंने खिलौनों और खेलों को डिजाइन करने और विकसित करने के लिए हाल ही में आयोजित कार्यक्रम - हैकाथॉन - का विवरण भी साझा किया: 70 प्रतिशत से अधिक प्रतिभागी स्कूलों से थे और इस प्रक्रिया के माध्यम से तैयार किए गए ज्यादातर खिलौने भारतीय संस्कृति और लोकाचार से ओतप्रोत थे।

एनसीईआरटी के निदेशक प्रो. श्रीधर श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में भाग लेने वाले विभिन्न गणमान्य व्यक्तियों, शिक्षाविदों, विद्वानों और प्रतिनिधियों का स्वागत किया और एनईपी 2020 का जिक्र करते हुए, जिसमें खिलौने-आधारित और मनोरंजन आधारित शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया है, अंतरराष्ट्रीय वेबिनार के महत्व पर प्रकाश डाला।

अपने संबोधन में वेबिनार की समन्वयक और लैंगिक अध्ययन विभाग, एनसीईआरटी की प्रमुख प्रो. ज्योत्सना तिवारी ने इस बात को रेखांकित किया कि खिलौने हमेशा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। उन्होंने प्लास्टिक के खिलौनों के बढ़ते उपयोग पर चिंता जताई, जिसका पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव होता है। उन्होंने ग्रामीण और स्वदेशी शिल्प को बढ़ावा देने और स्वदेशी खिलौनों के उद्योग को बढ़ावा देने के महत्व को रेखांकित किया और बच्चों के दुनिया के बारे अलग तरह से सोचने, पुनर्विचार और कल्पना शक्ति को मजबूत करने के लिए खिलौना आधारित शिक्षण पद्धति के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय वेबिनार के प्रति लोगों की जबर्दस्त प्रतिक्रिया का भी उल्लेख किया और इसका विवरण साझा किया।

बाल विश्वविद्यालय गांधीनगर के कुलपति श्री हर्षद पी शाह ने मुख्य भाषण दिया। उन्होंने वैश्विक खिलौना उद्योग के संदर्भ में भारतीय खिलौना उद्योग का स्वरूप सबके सामने रखा और बताया कि भारत की इसमें मामूली हिस्सेदारी है। उन्होंने यह भी कहा कि खिलौने बच्चों में कौशल, तार्किक सोच, सीखने की शक्ति और दक्षता विकसित करने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, खिलौने तथाकथित 'कठिन विषयों' को समझने में, छात्रों के बीच समन्वय और सहयोग विकसित करने में मदद करते हैं। डॉ. शाह ने बाल विश्वविद्यालय की मौजूदा पद्धतियों और नवीन पहलों जैसे- टॉय इनोवेशन लैब, 3डी प्रिंटिंग, टॉय लाइब्रेरी आदि के बारे में बताया। उन्होंने बाल विश्वविद्यालय की भविष्य की योजनाओं को भी साझा किया और बच्चों के विकास के लिए चार माध्यमों के बारे में बताया- गीत, कहानियां, खेल, खिलौने।

पहला तकनीकी सत्र विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों में खिलौनों पर आधारित था। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. सच्चिदानंद जोशी, सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली ने की। इसमें पांच पेपर थे जो विभिन्न विषयों पर खिलौनों और खेलों की परंपरा पर प्रस्तुत किए गए और इसमें इतिहास से उदाहरण लेकर आज के दिन से जोड़ा गया।

दूसरा तकनीकी सत्र खिलौनों के साथ विभिन्न अवधारणाओं को सीखना: खिलौना आधारित शिक्षण कला पर केंद्रित था। इस सत्र की अध्यक्षता किम इंस्ले, एसोसिएट प्रोफेसर (शिक्षण), पाठ्यक्रम विभाग, शिक्षण कला एवं मूल्यांकन विभाग, शिक्षा संस्थान, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन ने की। इस सत्र में शिक्षकों और शिक्षकों के प्रशिक्षकों ने अपने अनुभव साझा किए।

खिलौना डिजाइन शिक्षा: पाठ्यक्रम और करियर, पर केंद्रित तीसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता रवि पवैय्या, प्रोफेसर, औद्योगिक डिजाइन केंद्र, आईआईटी बॉम्बे, मुंबई ने की। विभिन्न डिजाइन संस्थानों के संकाय सदस्यों और एक उद्यमी ने देश में खिलौनों के डिजाइन एजुकेशन पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने खिलौना आधारित शिक्षण पद्धति की दिशा में काम करने के लिए विभिन्न संस्थानों के बीच सहयोग का आह्वान किया।

सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र, संस्कृति मंत्रालय की ओर से वीडियो प्रस्तुतियां दिखाई गईं। विकास गुप्ता द्वारा इनोवेटिव टॉय डिजाइन के जरिए बनारस टॉय क्लस्टर्स पर डिजाइन इंटरवेंशन, अतुल दिनेश के डिजाइन के माध्यम से चन्नापटना टॉय क्लस्टर की विरासत को पुनर्जीवित करना, अंजू कौर चाजोत, निदेशक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्कूल, केवीएस शिक्षकों द्वारा खिलौना आधारित शिक्षण पर प्रस्तुति और खिलौना आधारित शिक्षण पद्धति के जरिए आनंदपूर्ण कक्षाएं: ज्योति गुप्ता, निदेशक डीपीएस, साहिबाबाद और केआर मंगलम स्कूल, नई दिल्ली ने देशभर में खिलौने बनाने और खिलौने आधारित शिक्षण पद्धति पर प्रकाश डाला।

इस वेबिनार में श्रीमती एलएस चांगसन, संयुक्त सचिव, शिक्षा मंत्रालय, प्रो. श्रीधर श्रीवास्तव, निदेशक राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी), प्रो. अमरेंद्र प्रसाद बेहरा संयुक्त निदेशक, केंद्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईईटी), शिक्षा मंत्रालय के स्वायत्त संगठनों के अधिकारी, एनसीईआरटी के अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया।






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