नयी दिल्ली- प्रख्यात साहित्यकार नासिरा शर्मा ने कहा है कि पहले की तुलना में अब स्त्रियाँ ज़्यादा मुखर हुई हैं, लेकिन गाँव-कस्बों में यह विमर्श अभी पहुँचा भी नहीं है।
सुश्री शर्मा ने शुक्रवार को यहां साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित कार्यक्रम ‘लेखक से भेंट’ में कहा कि आज का स्त्री लेखन दूसरों की पीड़ा नहीं देख रहा है बल्कि उन्हें स्वयं की आज़ादी चाहता है, लेकिन आजादी के साथ जो सीमा होनी चाहिए उसे कौन तय करेगा। आलोचना में स्त्रियों की उपस्थिति पर उन्होंने कहा कि अगर महिला लेखन में दम और ईमानदारी है तो वह आलोचना के क्षेत्र में आए, तो उनका स्वागत होगा। उन्होंने कहा,“ मैं स्त्री-लेखन में बदले और प्रतिशोध की भावना से सहमत नहीं हूँ।”
प्रख्यात लेखिका ने श्रोताओं के समक्ष अपनी रचना-यात्रा को साझा किया।
कार्यक्रम के आरंभ में उनका स्वागत साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अंगवस्त्रम् एवं साहित्य अकादेमी की पुस्तकें भेंट करके किया।
अपने लेखन अनुभवों को साझा करते हुए सुश्री शर्मा ने कहा कि उनका लेखन बचपन में बँटवारे के ख़ौफ और बाद में पाकिस्तान और चीन से हुई लड़ाइयों से प्रभावित रहा है। ईरान-इराक़ जाने और इन देशों पर लिखने की शुरुआत सोची समझी नीति नहीं थी। फ़ारसी जानने के कारण इन देशों तक पहुँचना और उनको समझना आसान हुआ।
उन्होंने कहा कि हालाँकि बँटवारे का दर्द उन्होंने नहीं सहा लेकिन दूसरों की पीड़ा ने उन्हें प्रभावित किया। यह सब देखने के बाद समझ आया कि यह सियासत ही थी, जिसने घरों और आँगनों को बाँटा और इसका शिकार केवल मुस्लिम ही नहीं हिंदू भी हुए।
एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि उस समय जो हिंसा हुई थी वह तो शारीरिक थी लेकिन अब उससे ज्यादा मानसिक हिंसा है।