समाचार ब्यूरो
21/07/2023  :  20:14 HH:MM
रेलसंरक्षा पर विशेष जोर, दुर्घटनाओं में आयी खासी कमी
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नयी दिल्ली - रेलवे में संरक्षा कार्यों पर विशेष फोकस एवं पर्याप्त निवेश के कारण दुर्घटनाओं की संख्या और जनहानि में खासी कमी आयी है।


रेल मंत्रालय के आंकड़ों पर नज़र डालें तो 2000-01 में ट्रेन दुर्घटनाओं की संख्या 473 थी जो वर्ष 2022-23 में 48 हो गई है। इसी प्रकार से वर्ष 2004-14 की दस वर्ष की अवधि के दौरान ट्रेन दुर्घटनाओं का औसत 171.1 प्रति वर्ष था जबकि 2014-23 की अवधि के दौरान ट्रेन दुर्घटनाओं का औसत 70.9 प्रति वर्ष है।

रेल दुर्घटनाओं में गाड़ी के पटरी से उतरने के मामलों के आंकड़ों को देखें तो इस संख्या में भी भारी गिरावट आई है। वर्ष 2000-01 में गाड़ी के पटरी से उतरने की घटनाएं 350 थीं जबकि वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा 36 रहा। वर्ष 2004-14 की दस वर्ष की अवधि के दौरान ट्रेन पटरी से उतरने का औसत 86.7 प्रतिवर्ष था जबकि 2014-23 की अवधि के दौरान ट्रेन पटरी से उतरने का औसत 47.3 प्रतिवर्ष रहा है।

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार बीते नौ वर्षों में ट्रेनों के पटरी से उतरने और ट्रेनों की टक्कर से बचने के लिए भारतीय रेलवे द्वारा कई उपाय किए गए हैं। राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष (आरआरएसके) को महत्वपूर्ण सुरक्षा संपत्तियों के प्रतिस्थापन/नवीकरण/उन्नयन के लिए 2017-18 में पांच वर्षों के लिए एक लाख करोड़ के कोष के साथ स्थापित किया गया था। 2017-18 से 2021-22 तक सकल व्यय 1.08 लाख करोड़ रुपए खर्च आया। मानवीय विफलता के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को खत्म करने के लिए 31 मई तक 6427 स्टेशनों पर पॉइंट और सिग्नल के केंद्रीकृत संचालन के साथ इलेक्ट्रिकल/इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम लगाए गए हैं।

लेवल क्रासिंग गेटों पर सुरक्षा बढ़ाने के लिए 31 मई तक 11093 लेवल क्रॉसिंग गेटों की इंटरलॉकिंग क्रियान्वित की गई है। गत 31 मई तक 6377 स्टेशनों पर विद्युत साधनों द्वारा ट्रैक अधिभोग के सत्यापन के लिए सुरक्षा बढ़ाने के लिए स्टेशनों की पूर्ण ट्रैक सर्किटिंग प्रदान की गई है। सिग्नलिंग की सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत निर्देश अद्यतन किये गये हैं और उनमें अनिवार्य पत्राचार जांच, परिवर्तन कार्य प्रोटोकॉल, समापन ड्राइंग की तैयारी आदि जोड़े गए हैं। प्रोटोकॉल के अनुसार सिगनल एंड टेलीकाम उपकरणों के लिए डिस्कनेक्शन और पुनः कनेक्शन की प्रणाली पर फिर से जोर दिया गया है। लोको पायलटों की सतर्कता सुनिश्चित करने के लिए सभी लोकोमोटिव सतर्कता नियंत्रण उपकरणों (वीसीडी) से सुसज्जित हैं।

मस्तूल पर रेट्रो-रिफ्लेक्टिव सिग्मा बोर्ड लगाए गए हैं जो विद्युतीकृत क्षेत्रों में सिग्नल से पहले दो ओएचई मस्तूलों के बीच स्थित होते हैं ताकि कोहरे के मौसम के कारण दृश्यता कम होने पर चालक दल को आगे के सिग्नल के बारे में चेतावनी दी जा सके। कोहरे से प्रभावित क्षेत्रों में लोको पायलटों को एक जीपीएस आधारित फॉग सेफ्टी डिवाइस (एफएसडी) प्रदान किया जाता है जो लोको पायलटों को सिग्नल, लेवल क्रॉसिंग गेट आदि जैसे आने वाले स्थलों की दूरी जानने में सक्षम बनाता है।

प्राथमिक ट्रैक नवीनीकरण में आधुनिक ट्रैक संरचना का उपयोग सुनिश्चित किया गया है जिसमें 60 किग्रा, 90 अल्टीमेट टेन्साइल स्ट्रेंथ (यूटीएस) रेल, प्रीस्ट्रेस्ड कंक्रीट स्लीपर (पीएससी) इलास्टिक फास्टनिंग के साथ चौड़े बेस वाले स्लीपर, पीएससी स्लीपर पर पंखे के आकार का लेआउट अपनाना, गर्डर पुलों पर स्टील चैनल/एच-बीम स्लीपर का उपयोग शामिल है। मानवीय त्रुटियों को कम करने के लिए ट्रैक मशीनों से ट्रैक बिछाने की गतिविधि का मशीनीकरण किया गया है। रेल नवीनीकरण की प्रगति बढ़ाने और जोड़ों की वेल्डिंग से बचने के लिए 130 मीटर/260 मीटर लंबे रेल पैनलों की आपूर्ति बढ़ायी गयी है।

इसके साथ ही लंबी पटरियां बिछाना, एलुमिनोथर्मिक वेल्डिंग का उपयोग कम करना और रेल के लिए बेहतर वेल्डिंग तकनीक यानी फ्लैश बट वेल्डिंग को अपनाना, ओएमएस (ऑसिलेशन मॉनिटरिंग सिस्टम) और टीआरसी (ट्रैक रिकॉर्डिंग कार) द्वारा ट्रैक ज्यामिति की निगरानी, वेल्ड/रेल फ्रैक्चर पर नजर रखने के लिए रेलवे पटरियों की गश्त, थिक वेब स्विच और वेल्डेबल सीएमएस क्रॉसिंग का उपयोग भी सुनिश्चित किया गया है।

सूत्रों के अनुसार सुरक्षित प्रथाओं के पालन के लिए कर्मचारियों की निगरानी और उन्हें शिक्षित करने के लिए नियमित अंतराल पर निरीक्षण किए जाते हैं। ट्रैक संपत्तियों की वेब आधारित ऑनलाइन निगरानी प्रणाली लगायी जा रही है। तर्कसंगत रखरखाव आवश्यकताओं को तय करने और इनपुट को अनुकूलित करने के लिए ट्रैक डेटाबेस और निर्णय समर्थन प्रणाली को अपनाया गया है।






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