समाचार ब्यूरो
24/05/2023  :  21:33 HH:MM
वरीय न्याय सेवा की नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षण का प्रावधान किया जाय: हेमंत सोरेन
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रांची- झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि à¤à¤¾à¤°à¤–ंड उच्च न्यायालय के नए भवन का उद्घाटन आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के कर कमलों से संपन्न हो रहा है इसलिए मेरे साथ-साथ यह झारखण्ड के करोड़ों जनता के लिए गौरव का क्षण है।

श्री सोरेन ने आज झारखंड हाईकोर्ट के नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर कहा कि लगभग 165 एकड़ में फैले इस परिसर में झारखण्ड उच्च न्यायालय भवन का निर्माण 600 करोड़ रुपए की लागत से कराया गया है। एक आदिवासी बाहुल्य छोटे राज्य में यह भवन तथा परिसर देश के किसी भी उच्च न्यायालय के भवन तथा परिसर से बड़ा है। मुझे आशा है कि झारखण्ड राज्य जहाँ आदिवासी, दलित, पिछड़े एवं गरीब लोगों की बहुलता है। उन्हें सरल, सुलभ, सस्ता तथा तीव्र न्याय दिलाने की दिशा में यह संस्थान एक मील का पत्थर साबित होगा।

उन्होंने कहा कि गत वर्ष 26 नवंबर, 2022 को संविधान दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा पूरे देश के जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या पर अपनी चिंता व्यक्त की गई थी। झारखण्ड में भी छोटे-छोटे अपराधों के लिए बड़ी संख्या में गरीब आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक एवं कमजोर वर्ग के लोग जेलों में कैद हैं। यह चिन्ता का विषय है। इस पर गंभीर मंथन की जरूरत है। गत वर्ष हमने ऐसे मामलों की सूची तैयार करायी, जो अनुसंधान के लिए 05 वर्षों से अधिक अवधि से लंबित थे। उनकी संख्या लगभग 3,600 (तीन हजार छः सौ ) थी। एक अभियान चलाकर इनमें से 3,400 (तीन हजार चार सौ से अधिक मामलों का निष्पादन कराया गया है। अब हमने 04 वर्षों से अधिक अवधि से लंबित मामलों की सूची तैयार की है। इनकी संख्या भी लगभग 3,200 (तीन हजार दो सौ ) हैं। हम प्रयास कर रहे हैं कि इन मामलों का निष्पादन अगले छः माह के अंदर कर दिया जाय। मैं इसकी लगातार मॉनिटरिंग कर रहा हूँ।

श्री सोरेन ने कहा कि सबोर्डिनेट ज्यूडिशरी में सहायक लोक अभियोजकों की कमी के कारण मामलों के निष्पादन में दिक्कतें आ रही थी। गत माह ही हमने 107 सहायक लोक अभियोजकों की नियुक्ति की है और मुझे आशा है कि इससे मामलों के निष्पादन में तेजी आएगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश को सुनने का मौका मिला है। आप सबोर्डिनेट ज्यूडिशरी की गरिमा और इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए चिंतित रहते हैं। मैं आपको बताना चाहूँगा कि झारखंड राज्य में सबोर्डिनेट ज्यूडिशरी के इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर भी बहुत बेहतर कार्य हुआ है। मुझे लगता है कि देश में सबसे अच्छी स्थिति हमारे राज्य की है। आज झारखंड में कुल 506 न्यायिक पदाधिकारी कार्यरत हैं, जिनके लिए 658 कोर्ट रूम तथा 639 आवास उपलब्ध हैं। सबोर्डिनेट ज्यूडिशरी के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भविष्य में भी जो आवश्यकताएँ होंगी राज्य सरकार उसको प्राथमिकता देगी ।

मुख्यमंत्री ने कहा कि टेक्नोलॉजी का उपयोग कर न्यायिक प्रणाली को कैसे सरल, सुलभ, सस्ता तथा तीव्र बनाया जाए, इसके लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा अच्छी पहल की जा रही है। मैं उसकी सराहना करता हूँ और आपको आश्वस्त करना चाहूँगा कि अगर इस कार्य के लिए कोई भी प्रोजेक्ट झारखंड के लिए तैयार किया जाएगा तो सरकार उसे पूरी तरह सपोर्ट करेगा करेगी।

श्री सोरेन ने कहा कि एक महत्वपूर्ण विषय की ओर उपस्थित महानुभावों का ध्यान आकृष्ट कराना चाहूँगा। झारखंड राज्य में सुपीरियर जुडिशल सर्विस में आदिवासी समुदाय की नगण्य उपस्थिति एक चिंता का विषय है। इस सेवा की नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षण का प्रावधान नहीं रखा गया है। चूँकि इसी सेवा से उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किए जाते हैं, इसलिए उच्च न्यायालय में भी वही स्थिति है। इसलिए मैं चाहूँगा कि इस आदिवासी बाहुल्य राज्य में वरीय न्याय सेवा की नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षण का प्रावधान किया जाय।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज हमारे बीच नये कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल उपस्थित हैं। मुझे लगता है झारखंड में शायद यह आपकी पहली यात्रा है। मैं आपका स्वागत करता हूँ और एक बात आपके समक्ष रखना चाहूँगा । यद्यपि भारत सरकार द्वारा सबोर्डिनेट ज्यूडिशरी के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सेंट्रल स्पॉन्सर्ड स्कीम चलाई जा रही है, परंतु ऐसी कोई स्कीम उच्च न्यायालयों के लिए उपलब्ध नहीं है। अगर जमीन की कीमत जोड़ ली जाए तो राज्य सरकार द्वारा झारखंड उच्च न्यायालय के इस नए भवन पर लगभग 1,000 (एक हजार) करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई है। इसमें केन्द्र सरकार की कोई हिस्सेदारी नहीं है। समय-समय पर उच्च न्यायालयों में भी अतिरिक्त इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता पड़ती है, अतएव मेरा अनुरोध होगा कि भारत सरकार उच्च न्यायालयों के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भी एक सेंट्रल स्पॉन्सर्ड स्कीम लागू करें ।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी मान्यता है कि न्यायालयों के कार्यों का निष्पादन स्थानीय भाषाओं में किए जाने की नितांत आवश्यकता है, ताकि न्याय के मंदिरों और गरीब आम जनों के बीच की दूरी कम हो सके। न्यायिक पदाधिकारियों और सहायक लोक अभियोजकों के लिए कम-से-कम एक स्थानीय भाषा का सीखना भी बाध्यकारी किया जाना चाहिए, ताकि न्याय को और सुलभ बनाया जा

सके ।






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