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हर वरà¥à¤· शब ठबरात के दूसरे दिन सोनबरसा पà¥à¤°à¤–ंड के मà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤•à¤ªà¥à¤° सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ आसà¥à¤¥à¤¾ का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• सà¥à¤¬à¥à¤¬à¤¾ साह के मजार शरीफ पर उरà¥à¤¸ का आयोजन किया जाता है। सà¥à¤¬à¥à¤¬à¤¾ साह रहमतà¥à¤²à¥à¤²à¤¾ अलैहे का 32 वा उरà¥à¤¸ है। मजार शरीफ पर दूर दूर से लोग आते है और चादर चढ़ाते और फातिहा पढ़ते हैं। कहा जाता है कि यहां मनà¥à¤¨à¤¤ मांगते है वह पà¥à¤°à¤¾ हो जाता है। ईलाके के साथ साथ नेपाल से à¤à¥€ काफी संखà¥à¤¯à¤¾ में लोग इस उरà¥à¤¸ में शरीक होते है। पिछले 32 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से मà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤•à¤ªà¥à¤° गà¥à¤°à¤¾à¤®à¤µà¤¾à¤¸à¥€ मिल कर उरà¥à¤¸ का आयोजन करते आ रहे हैं। उरà¥à¤¸ के साथ जलसा का à¤à¥€ आयोजन किया जाता है। जिसमें इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤¿à¤• विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ शायर à¤à¤¾à¤— लेते है। उरà¥à¤¸ à¤à¤µà¤‚ जलसा को कामयाब बनाने में गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ मो जà¥à¤²à¥à¤«à¥‡à¤•à¤¾à¤° अलाम उरà¥à¤« लाल बाबू, मो आलम नदाफ, मो मूसा नदाफ, मो सगीर शेख, मो अबà¥à¤²à¥ˆà¤¸ मंसूरी, मो वली अहमद शेख, मो फारूक नदाफ, मो मनà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कà¥à¤°à¥ˆà¤¶à¥€, मो दिलशेर शाह, मो ननà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤°à¥ˆà¤¶à¥€, मो मैनà¥à¤¦à¥€à¤¦à¥€à¤¨ शाह, मो सफदर अली, मो शोहराब नदाफ, मà¥à¤œà¤«à¥à¤«à¤° अलाम आदि महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥à¤®à¤¿à¤•à¤¾ अदा करते है।
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