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साहितà¥à¤¯ अकादेमी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मनाठजा रहे साहितà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ के तीसरे दिन आज 1947 के बाद à¤à¤¾à¤°à¤¤ में नाटक का विकास विषयक परिसंवाद का आयोजन किया गया। उदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¨ वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ देते हà¥à¤ पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ रंगकरà¥à¤®à¥€ à¤à¤¾à¤¨à¥ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ ने हिंदी नाटककार à¤à¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° का संदरà¥à¤ देते हà¥à¤ कहा कि हमारी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ नाटà¥à¤¯ परंपरा तो शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ थी ही लेकिन आधà¥à¤¨à¤¿à¤• रंगमचं परंपरा में à¤à¥€ विशिषà¥à¤Ÿà¤¤à¤¾ के सूतà¥à¤° निहित है। à¤à¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° के à¤à¤¬à¥à¤¸à¤°à¥à¤¡ नाटक इसका उदाहरण हैं। उस समय उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जो à¤à¥€ कà¥à¤› कलà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया था वह आज à¤à¥€ सजग रंगमंच का आधार है। à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥€ रंगमंच पर संकट हमेशा रहा है और रहेगा à¤à¥€ लेकिन उसकी जिजीविषा ही उसे बचाठरखेगी। सतà¥à¤° के अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र कंबार ने कहा कि नाटक में जो अजूबे का ततà¥à¤µ है, वह ही उसे अनोखा और विशेष बनाता है। करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤• के आदिवासी नाटक हां या वहाठके कालजयी नाटक सà¤à¥€ मानवता के नजदीक हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने नाटकों के तीन चरण बताते हà¥à¤ पारसी थियेटर, साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• नाटक और आधà¥à¤¨à¤¿à¤• नाटकों के बारे में विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से बताया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कला माधà¥à¤¯à¤®à¥‹à¤‚ पर तकनीक के पà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¥à¤µ को घातक बताते हà¥à¤ कहा कि सचà¥à¤šà¥€ मानवीय संवेदना ही कलाओं को जिंदा रखती है। परिचरà¥à¤šà¤¾ सतà¥à¤°, जोकि सतीश कà¥à¤²à¤•à¤°à¥à¤£à¥€ की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ में संपनà¥à¤¨ हà¥à¤†, में रबिजीता गोगोई ने असमिया नाटक, संगम पांडेय ने हिंदी नाटक, राजा वारियर ने मलयाळमà¥, पी. बीरचंदà¥à¤° सिंह ने मणिपà¥à¤°à¥€ और अà¤à¤¿à¤°à¤¾à¤® à¤à¤¡à¤•à¤®à¤•à¤° ने मराठी थियेटर की पिछले 75 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ की यातà¥à¤°à¤¾ को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया। सà¤à¥€ ने अपनी-अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के नाटकों के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ चरणों का उलà¥à¤²à¥‡à¤– करते हà¥à¤ कहा कि सबसे पहले नाटक राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ से ओत-पà¥à¤°à¥‹à¤¤ थे लेकिन तब à¤à¥€ हमने अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ परंपरा के अनेक नाटक और शिलà¥à¤ª को समकालीन रूप देते हà¥à¤ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया था। हर à¤à¤¾à¤·à¤¾ में नाटक के लिठउसके खतà¥à¤® होने का संकट ही उसे पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¥€à¤µà¤¿à¤¤ रखता है और उससे जà¥à¥œà¥‡ लेखक-कलाकारों को दिशा पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता रहता है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि रंगमंच का दरà¥à¤¶à¤•à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· संवाद ही उसे अनà¥à¤¯ कला माधà¥à¤¯à¤®à¥‹à¤‚ से महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ और पà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤‚गिक साबित करता है।इससे पहले पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ लेखकों ने लेखक समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¨ के अंतरà¥à¤—त अपने रचनातà¥à¤®à¤• अनà¥à¤à¤µ पाठकों से साà¤à¤¾ किà¤à¥¤ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¨ की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ साहितà¥à¤¯ अकादेमी के उपाधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· माधव कौशिक ने की।आमने सामने’ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में असमिया, बाङà¥à¤²à¤¾, गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€, हिंदी, तमिळ à¤à¤µà¤‚ तेलà¥à¤—ॠà¤à¤¾à¤·à¤¾ के लिठपà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ लेखकों से कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ à¤à¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° डेका, सà¥à¤¬à¥‹à¤§ सरकार, विनोद जोशी, चंदन कà¥à¤®à¤¾à¤°, मालन à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¸. नाममलà¥à¤²à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° राव ने बातचीत की।
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