समाचार ब्यूरो
28/04/2023  :  21:54 HH:MM
आनंद मोहन की रिहाई की मांग करने वाले अब कर रहे विरोध : नीतीश
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पटना - बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी की हत्या मामले में जेल में रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई पर मचे घमासान को लेकर मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधा और कहा कि जो लोग पहले इसकी मांग कर रहे थे वही जब रिहाई हो गई तो विरोध कर रहे हैं।

श्री कुमार ने शुक्रवार को यहां सिविल सेवा दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करने के बाद संवाददाताओं से बातचीत के दौरान श्री आनंद मोहन सहित अन्य कैदियों को जेल से रिहा करने के सवाल पर कहा कि एक आदमी के बारे में जो इतनी बात की जा रही है, यह आश्चर्यजनक है। मुख्य सचिव ने कल ही इसके बारे में सारी बातें बता दी है। अगर आपलोग इसको जानना चाहते हैं तो केंद्र से 2016 में जो मैन्यूअल जारी हुआ था उसमें क्या प्रावधान है। इसमें किसी के लिये विशेष प्रावधान ही नहीं है लेकिन बिहार में यह प्रावधान था इसलिए वह भी अब हट गया, अब सबके लिये बराबर हो गया। यह प्रावधान किसी राज्य में नहीं है।
मुख्यमंत्री ने पूछा कि क्या सरकारी अधिकारी की हत्या और सामान्य आदमी की हत्या इन दोनों में फर्क होना चाहिये। आज तक ऐसा कहीं होता है। आजीवन कारावास की वास्तविक अवधि 14 वर्ष एवं परिहार जोड़कर 20 वर्ष पूर्ण करने के बाद कैदियों को कारा से मुक्त करने का प्रावधान है। बिहार में वर्ष 2017 से अभी तक 22 बार परिहार परिषद् की बैठक हुई और 698 बंदियों को कारा मुक्त किया गया। केंद्र सरकार द्वारा 26 जनवरी और 15 अगस्त को और बाकी अन्य दिवस के अवसर पर बंदियों को छोड़ा जाता है।
श्री कुमार ने कहा कि बिहार में वर्ष 2017 से अब तक कई कैदियों को रिहा किया गया है। इस बार भी 27 कैदियों को रिहा किया गया है। उसमें एक ही पर चर्चा हो रही है। इसका तो कोई मतलब नहीं है। तरह-तरह के लोग बयान देते हैं तो उनको आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, “हमको ये कहना उचित नहीं है। जो लोग पहले इसकी मांग कर रहे थे। जब रिहाई हो गयी तो विरोध कर रहे हैं। इस विरोध का कोई मतलब नहीं है। इसको लेकर विरोध करने का अब कोई तुक नहीं है।”
मुख्यमंत्री ने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) द्वारा अरवल में टाडा बंदियों को छोड़ने की मांग के संबंध में पत्रकारों के सवाल पर कहा कि जो प्रावधान है, जो नियम है, उसके अनुरूप ससमय बंदियों को छोड़ने की कार्रवाई की जाती है। उन्होंने कहा कि कई राज्यों द्वारा बंदियों को मुक्त किया जाता है। वर्ष 2020-21 में असम में 280, छत्तीसगढ़ में 338, गुजरात में 47, हरियाणा में 79, हिमाचल प्रदेश में 50, झारखंड में 298, कर्नाटक में 195, केरल में 123, मध्यप्रदेश में 692, महाराष्ट्र में 313, उड़ीसा में 203, राजस्थान में 346, तेलंगाना में 139, उत्तर प्रदेश में 656, दिल्ली में 280 और केंद्र शासित प्रदेशों में 294 बंदियों को रिहा किया गया है। बिहार में वर्ष 2020 और 2021 दोनों को मिलाकर कुल 105 बंदियों को रिहा किया गया है। अन्य राज्यों से आप बिहार की तुलना कर लीजिये।






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