समाचार ब्यूरो
22/05/2022  :  17:11 HH:MM
शेरशाह सूरी विकास पुत्र नहीं विकास पितामह थें- मो० मोअज़्ज़म आरिफ
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राजकीय उर्दू मध्य विद्यालय सकरी गली, गुलजारबाग, पटना-7 में आज शेरशाह सूरी की 477 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर विद्यालय के शिक्षक श्री मो० मोअज़्ज़म आरिफ ने शेरशाह सूरी कि गणना मध्यकालीन भारत के प्रतिभाशाली, प्रतिभावान, विजेता, योद्धा, कुशल प्रशासक, राज्य निर्माता, धर्म परायण, धार्मिक सहिष्णु, कला एवं साहित्य के संरक्षक, अदम्य वीर, कूटनीतिज्ञ, न्याय प्रिय, प्रशासनिक सुधारों के जनक, महान शासक के रूप में की। श्री आरिफ ने बताया कि शेरशाह सूरी एक सामान्य परिवार के होते हुए भी अपने प्रतिभा के बल पर इतिहास के एक महत्वपूर्ण शासक बने। शेरशाह द्वारा जन कल्याण के क्षेत्र में किए गए चौमुखी विकास के कारण इन्हें विकास पुत्र नहीं बल्कि विकास पितामह कहना उचित होगा। इनके द्वारा महज 5 साल की हुकूमत में अनेकों जन कल्याण के कार्य किए गए। शिक्षा एवं साहित्य को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य शेरशाह ने शिक्षा की समुचित व्यवस्था की थी। गरीब विद्यार्थियों को प्रोत्साहन देने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान कराई जाती थी। शेरशाह ने साहित्यकारों एवं विद्वानों को राष्ट्रीय सम्मान एवं आर्थिक सहायता भी प्रदान की थी। शेरशाह सूरी को धर्म सहिष्णु सुल्तान कहा जाता है। शेरशाह हिंदुओं और मुसलमानों को एक समान दृष्टि से देखते थे। भू राजस्व व्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार किए। व्यापार वाणिज्य को प्रोत्साहन दिया एवं मुद्रा प्रणाली को व्यवस्थित किया। वह न्याय पर अत्यधिक बल देते थे। न्याय के क्षेत्र में उन्होंने समानता का सिद्धांत अपनाया था। इन्होंने समस्त प्रजा को एक समान समझा। शेरशाह के समय की स्थापत्य कला का सबसे सुंदर नमूना उनका स्वयं का सासाराम का मकबरा है। विकास कार्यों को प्रोत्साहन देने, भ्रष्टाचार का खात्मा करने, सड़कों का जाल बिछाने, जी० टी० रोड का निर्माण करने, भूमि एवं राजस्व में सुधार करने, गुप्तचर व्यवस्था को ठीक करने, डाक व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने आदि क्षेत्र में किए गए अद्भुत कार्यों के कारण शेरशाह सूरी इतिहास में अमर हो गए हैं। श्री आरिफ ने अध्ययनरत बच्चों को बताय कि गरीब, असहाय, निसहाय, जरूरतमंदों को सहायता देने के उद्देश्य से शेरशाह सूरी ने एक दान विभाग की स्थापना की थी। इसके अंतर्गत ऐसे व्यक्ति अथवा संस्था को सहायता दी जाती थी जिसे सहायता की आवश्यकता होती थी। जगह जगह लंगर चलए जाते थे और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त भोजन बांटे जाते थे। शेरशाह की दान शीलता एवं उदारता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शेरशाह के भोजनालय में प्रतिदिन हजारों मुसाफिर, किसान, मजदूर, निर्धन, बुजुर्ग, धार्मिक व्यक्तियों का भोजन तैयार होता था। शेरशाह सूरी ने मुसाफिरों के लिए जगह जगह सराय बनवाए थे। हर शहर में एक सराय ऐसा भी बनवाया गया था जिसमें बाग- बगीचा हो ताकि इसमें उगने वाले फल और सब्जियां मुसाफिरों के काम आ सके। श्री आरिफ ने बताया कि यदि दुर्भाग्य से शेरशाह के जीवन का अंत नहीं होता तो वाह अकबर से भी अधिक महान शासक होते। इस मौके पर विद्यालय के अन्य शिक्षकों में श्रीमती कौसर जहां, शबाना प्रवीण, साबरीन खातून के साथ-साथ विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री संजय कुमार आदि उपस्थित रहे।






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