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इन दिनों दिनों मेरी हर सà¥à¤¬à¤¹ 2013 में आई अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• कपूर की फिलà¥à¤® ‘काई पो चे’ में अमित तà¥à¤°à¤¿à¤µà¥‡à¤¦à¥€-सà¥à¤µà¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ किरकिरे के कंपोजीशन ‘सà¥à¤²à¤à¤¾ लेंगे रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ का मांà¤à¤¾â€™ से होती है। उठती हूं तो यह दिमाग में चल रहा होता है। किरकिरे का यह गीत फिलà¥à¤® में चितà¥à¤°à¤¿à¤¤ 2000 के दशक के अहमदाबाद के तार-तार हà¥à¤ सामाजिक तानेबाने की पारà¥à¤¶à¥à¤µà¤à¥‚मि में बहà¥à¤¤ सधा हà¥à¤†, समà¤à¤¦à¤¾à¤°, गंà¤à¥€à¤° और साथ-साथ आशावादी à¤à¥€ है। यह वही समय है जब गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ à¤à¥‚कमà¥à¤ª, गोधरा और सांपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• दंगों के दौर से गà¥à¤œà¤°à¤¾ था।
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