समाचार ब्यूरो
23/04/2022  :  17:49 HH:MM
अपनी जान-माल की हिफाज़त करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार : मौलाना अमीनुल हक़ अब्दुल्लाह क़ासमी
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अपनी जान-माल की हिफाज़त करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार : मौलाना अमीनुल हक़ अब्दुल्लाह क़ासमी ईमान और बुज़दिली एक दिल में जमा नहीं हो सकते, जामा मास्जिद अशरफाबाद में कुरआन मुकम्मल होने के अवसर पर खिताब कानपुर :- आज के हालात में मुसलमानों की सबसे बड़ी ज़रूरत यह है कि वह अपनी जान, माल, ईमान, इज्ज़त व आबरू की हिफाज़त स्वंय करे। जब हम स्वंय नियत करेंगे कि हमें का़नून के दायरे में रह कर अपनी सुरक्षा के उपाय करना है तभी आसमान से अल्लाह की मदद हमारे लिये उतरेगी। इन विचारों को जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष मौलाना अमीनुल हक़ अब्दुल्लाह क़ासमी ने जामा मस्जिद अशरफाबाद में तरावीह में कुरआन का दौर मुकम्मल होने के अवसर पर व्यक्त किया। मौलाना ने कहा कि मुसलमानों को चाहिये कि वह अल्लाह से अपने सम्बन्ध को मज़बूत करें, दिल को साफ करें, मामलात दुरुस्त करें, सच्चे मुसलमान का जो किरदार होता है वह दुनिया के सामने पेश करें, इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं से दुनिया को रूबरू करायें, पड़ोसियों और देशबन्धुओं के साथ अच्छा मामला करें, दूसरों की मदद करें, खुद मुसलमान होने के साथ इस्लाम का सही मतलब लोगों तक पहुंचायें। यह सबकुछ करने के बाद भी अगर कोई ज़बरदस्ती आपकी जान-माल का दुश्मन बन जाये तो डट कर उसका मुक़ाबला करें। हम मुसलमान मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उम्मती और गुलाम हैं, हम कमज़ोर, बुज़दिल, डरपोक और कम हिम्मत नहीं हो सकते। अगर कोई हमारे सब्र और बर्दाश्त को कमज़ोरी समझ कर नुक्सान पहुंचाने लगे तो शरीअत में इसकी इजाज़त दी गई है कि अपनी जान बचायें, हमारे देश के कानून ने भी इसकी इजाज़त दी है कि अगर कोई आपकी जान-माल, इज्ज़त आबरू, घर-परिवार का दुश्मन बनकर नुक्सान पहुंचाये तो आत्मरक्षा के तहत हर स्तर पर डटकर उसका प्रतिरोध करें। मौलाना ने कहा कि हमारी जान, हमारी ज़िंदगी, हमारी इज्ज़त व आबरू भले ही वह एक इंसान की हो या पूरी क़ैम की हो, यह अल्लाह की तरफ से हमारे पास अमानत है, इसकी हिफाज़त करना हमारी ज़िम्मेदारी है। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है कि जो शख्स अपनी जान, अपने माल, इज्ज़त, अपने बीवी-बच्चों की हिफाज़़त करते हुए मारा जाये वह शहीद है। अल्लाह ने हमारे ऊपर जो ज़िम्मेदारी डाली है उस ज़िम्मेदारी को अदा करते हुए अगर हम दुनिया से चले गये तो अल्लाह को हमारी ज़िम्मेदारी का यह एहसास इतना पसन्द है कि वह शहादत का दर्जा अता फरमाते हैं। मौलाना ने लोगों को स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करते हुए कहा कि ऐसी चीज़ों का प्रयोग करना जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो वह कभी मकरूकह तो कई बार हराम तक हो जाती हैं। मौलाना ने कहा कि कोई हमारी जान का दुश्मन हो और हम मुहब्बत के साथ उसके सामने अपनी जान पेश कर दें, अल्लाह ने हमें इसकी इजाज़त नहीं दी है, कमहिम्मती, बुज़दिली, डर, खौफ एक दिल के अन्दर ईमान के साथ जमा नहीं हो सकते। मौलाना ने बताया अल्लाह अपने महबूब बन्दों को आज़माते हैं कि तुम्हारे अन्दर मेरा विश्वास और भरोसा कितना है, जब यह हमारा विश्वास है कि दुनिया का कोई काम अल्लाह की मर्ज़ी के बिना नहीं हो सकता तो आज के मौजूदा हालात अगर अल्लाह को मंज़ूर है तो हम इन हालात में भी खुश हैं, जब अल्लाह को मंजूर होगा हालात बदल जायेंगे, इस वजह से सब्र, हिकमत बहुत बड़ी चीज़ है, दूसरों की बुराइयों पर भलाई का मामला करना यह बहुत अच्छी चीज़ है लेकिन हिकमत के नाम पर अपने आपको डरपोक और बुज़दिल बना लेना, दिल में दूसरों का खौ़फ बैठा लेना सच्चे मुसलमान होने की निशानी नहीं है। अगर हम कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम मज्लूमों के लिये दुआ तो कर सकते हैं, सरकारों से मांग तो कर सकते हैं एक आवाज़ होकर कि क़ानून के अनुसार काम करें, का़नून के खिलाफ कोई काम ना करें। मौलाना ने कहा कि इस वक़्त के हालात में मुसलमानों की सबसे बड़ी ज़रूरत है कि अपने हिम्मत व हौसले मज़बूत करें, सब्र व हिकमत से काम लेंने साथ-साथ डर और बुज़दिली को अपने दिल से निकालें।






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