समाचार ब्यूरो
23/04/2022  :  16:42 HH:MM
कैदियों को रिहा कराना इंसानी जरूरत ही नही शरअई तकाज़ा भी हैः मौलाना खालिद रशीद
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कैद या जेल की सलाखें दुख व दर्द की बुरी शकलें हैं। इस्लाम एक एैसा दीन है जो इंसानों को आजाद देखना चाहता है लेकिन इसी के साथ साथ वह इंसाफ व न्याय और बराबरी भी कायम करना चाहता है। इस लिए शरीअत इस्लामी ने कैद व सज़ा का निजाम भी बनाया है। इस लिए न्याय व इंसाफ के तकाजों को पूरा करने के लिए कैद खाने भी जरूरी हैं। अगर कोई मुजरिम है तो उसको सज़ा दी जायेगी। वह सजा पूरी करने और अपने गुनाह से तौबा करने के बाद आम जिन्दगी गुजारने का हक़दार होगा। इन विचारों को इमाम ईदगाह लखनऊ मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली चेयरमैन इस्लामिक सेन्टर आफ इण्डिया लखनऊ ने प्रकट किया। वह ‘‘यौम-ए-फतह मक्का’’ के अवसर पर लखनऊ जिला आदर्श जेल से कई कैदियों को रिहा करा रहे थे। मौलाना फरंगी महली ने इस अवसर पर कहा कि नबी पाक सल्ल0 ने इरशाद फरमाया है कि तुम जमीन वालों पर रहम करो तो आसमान वाला तुम पर रहम करेगा। नबी पाक सल्ल0 के यह फरमान का उदाहरण 20 रमजान 8 हिजरी (11 जनवरी 630 ई0) को दुनिया ने मक्का की फतह के वकत देखा जब आप सल्ल0 ने अपने तमाम दश्मनों को मॉफ फरमा दिया। मौलाना फरंगी महली ने कहा कि कैदियों को रिहा करना, भूकों को खाना खिलाना, बीमारों की देख भाल करना इस्लामी शरीअत की नजर में सवाब के काम हैं। यह एैसे काम हैं जिन पर अमल करके हम खुदा पाक और नबी पाक सल्ल0 की खुशी हासिल कर सकते हैं। मौलाना ने कहा कि कैदियों को रिहा कराने के सिलसिले में कुरान पाक और हदीस शरीफ में साफ आदेश आयें हैं। इन कैदियों को रिहा कराना इंसानी जरूरत तो है ही साथ ही शरअई तकाजा भी है। इस लिए आज हम ने लखनऊ जिला आदर्श जेल से कैदियों को रिहा कराया है। यह तमाम लोग अपनी सजाओं को पूरा करने के बाद भी जेल में कैद थे। इस्लामिक सेन्टर के इस प्रतिनिधि मण्डल में अदनान शाहिद खान, पीर जादा शेख राशिद अली मीनाई और मौलाना अब्दुल लतीफ नदवी शामिल थे।






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