समाचार ब्यूरो
30/03/2023  :  22:50 HH:MM
संसद में अव्यवस्था चिंता का विषय है: धनखड़
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धनखड़ ने गुरूवार को यहां एक समारोह में कहा कि हमारे पास दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। हम सबसे बड़े और लोकतंत्र की जननी हैं। हमारी संवैधानिक संस्थाएं मजबूत और स्वतंत्र हैं।

नयी दिल्ली- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद में "अव्यवस्था" पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि राष्ट्र सर्वोच्च है और व्यवसाय या हित इसके ऊपर नहीं है।

श्री धनखड़ ने गुरूवार को यहां एक समारोह में कहा कि हमारे पास दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। हम सबसे बड़े और लोकतंत्र की जननी हैं। हमारी संवैधानिक संस्थाएं मजबूत और स्वतंत्र हैं। हमें न्याय व्यवस्था पर गर्व है। उन्होंने कहा कि इस संबंध हमें सीख देने के लिए दुनिया में किसी के पास भी साख नहीं है।
उन्होंने कहा कि हममें से कुछ लोग हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों को कलंकित करने में लगे हुए हैं।
उन्होंने कहा कि आपको दुनिया में ऐसा उदाहरण नहीं मिलेगा कि सत्ता के पदों पर बैठे लोग अपने ही देश को नीचा दिखाने के लिए दूसरे देशों में चले जाएं। इस पर हम सभी को चिंतन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि
राष्ट्र को हमेशा पहले रखा जाना चाहिए। कोई भी हित, व्यवसाय या अन्य कोई भी, राष्ट्रीय हित से ऊपर नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि हम सभी को देश के भीतर और बाहर काम करने वाली सुनियोजित वैश्विक शक्तियों के भारत की अखंडता के खिलाफ आभासी तीव्र युद्ध के बारे में जागरूक होने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुकाबला पक्षपातपूर्ण रुख और व्यक्तिगत चिंताओं से किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। भ्रष्टाचार के मुद्दों को चुनावी चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में कोई भी किसी भी आधार पर कानून से ऊपर और पहुंच से परे होने का दावा नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा, “समय आ गया है कि सभी इस स्तर की वास्तविकता से सामंजस्य स्थापित करें। हमेशा याद रखें, आप हमेशा कितने ही ऊँचे रहें, कानून हमेशा आपके ऊपर है।”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र के मंदिर‌ और संवाद, वाद-विवाद, चर्चा और विचार-विमर्श के लिए वैध संवैधानिक मंच व्यवधान और गड़बड़ी से त्रस्त हैं। संसद में अव्यवस्था सामान्य व्यवस्था बन गई है। इससे ज्यादा चिंताजनक कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि जब विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका अपने-अपने क्षेत्र में ईमानदारी से काम करती हैं और सद्भाव, एकजुटता और तालमेल से काम करती हैं, तो लोकतांत्रिक मूल्यों और जनहित को बेहतर ढंग से पूरा किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश के गतिशील लोकतंत्र में ऐसा कोई समय नहीं होगा, जब इन संस्थानों के बीच कोई मुद्दा न हो। मुद्दे होना तय है। सहयोगपूर्ण रुख का सहारा लेते हुए इन्हें हल करने की आवश्यकता है। इन संस्थाओं - विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के शीर्षस्थ लोगों के बीच एक संवादात्मक तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है ताकि मुद्दों का समाधान पूरी तरह से हो सके।






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