|
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का हर इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬ चाहे जितना अवामी हो मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¤ गà¥à¥›à¤°à¤¨à¥‡ के साथ उसका दाà¤à¤°à¤¾ तंग होता है और असर कम, यहां तक के सफ़हठहसà¥à¤¤à¥€ से मिट जाता है। लेकिन ईमानी और दीनी बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥‹à¤‚ पर इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬à¥‡ वकà¥à¤¼à¤¤ गà¥à¥›à¤°à¤¨à¥‡ के साथ जवान होता है और इसका दाà¤à¤°à¤¾ वसीअ होता जाता है। इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬à¥‡ आशूरा जिसकी नà¥à¤®à¤¾à¤¯à¤¾à¤‚ तरीन मिसाल है।
इसी इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬ से रूह लेकर ईरान में इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬ बरà¥à¤ªà¤¾ हà¥à¤†à¥¤ शदीद मà¥à¤–़ालिफ़तों और दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के बावजूद इसकी वà¥à¤¸à¤…त, गहराई और गैराई बॠरही है। पैग़ामे इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬ अपने फ़िकà¥à¤°à¥€ और अमली असरात के साथ साथ जà¥à¤—राफ़ियाई लेहाज़ से फ़ैल रहा है और रोज़ाना आलमे बशरीअत के नठइलाक़ों तक पहà¥à¤‚च रहा है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह इंसानीयत की बक़ा की कोशिश है, हà¥à¤•ूमत बनाने और इकà¥à¤¼à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° क़ायम करने की हवस नहीं।
मौलाना सयà¥à¤¯à¤¦ सफी हैदर ने कहा कि इंसानीयत दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ मà¥à¤¸à¤²à¤¸à¤² मà¥à¥™à¥à¤¤à¤²à¤¿à¥ž तरीक़ों और वसीलों से इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬ और बानिये इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬ की अज़ीम शख़à¥à¤¸à¥€à¤¯à¤¤ को मख़दोश करने की नाकाम कोशिश करते नज़र आते हैं। लेकिन हर आज़ाद फ़िकà¥à¤° इंसान जिसने आपकी ज़िनà¥à¤¦à¤—ी का सर सरी मà¥à¤¤à¤¾à¤²à¥‡à¤† à¤à¥€ किया वह आप के किरदार का कलमा पà¥à¤¤à¤¾ नज़र आता है। यह बानिये इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬ की रूहानीयत के अलावा और किस बात का नतीजा है कि कल का मà¥à¤–़ालिफ़ आज का मवाफ़िक़ नहीं बलà¥à¤•ि मà¥à¤°à¥€à¤¦ बनता दिखाई दे रहा है।
यही बात हर बा शऊर इंसान को सोचने पर मजबूर करती है कि आखि़र इस मरà¥à¤¦à¥‡ इलाही में कौन सी ख़à¥à¤¸à¥‚सीयत थी कि तीन दहाईयों से ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अरसा गà¥à¥›à¤°à¤¨à¥‡ के बाद à¤à¥€ सिरà¥à¤«à¤¼ यह कि वह शख़à¥à¤¸à¥€à¤¯à¤¤ मक़बूल ख़ास व आम है बलà¥à¤•ि नाम ख़à¥à¤®à¥ˆà¤¨à¥€ सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही लोगों में à¤à¤• उमंग और दिलों में à¤à¤¹à¤¤à¥‡à¤°à¤¾à¤® पैदा हो जाता है और हर à¤à¤• अपने क़ाà¤à¤¦, रहबर और पेशवा की हैसीयत से इनका à¤à¤¹à¤¤à¥‡à¤°à¤¾à¤® करता है।
इसकी वजह सिरà¥à¤«à¤¼ और सिरà¥à¤«à¤¼ वही है जो अमीरूल मोमनीन अलैहिसà¥à¤¸à¤²à¤¾à¤® ने बयान फ़रमाई है। ‘‘जो लोगों का पेशवा बनना चाहता है उसे दूसरों को तालीम देने से पहले ख़à¥à¤¦ को तालीम देना चाहिये और ज़बान से दरà¥à¤¸à¥‡ इख़à¥à¤²à¤¾à¥˜ देने से पहले अपनी सीरत व किरदार से तालीम देना चाहिये’’ (नहजà¥à¤² बलाग़ा, कलमाते क़िसार 73) ज़ाहिर है जो तरबीयत ज़बानी होती है समाअत से तजावà¥à¥› नहीं करती लेकिन जो तरबीयत अमली होती है वह नसà¥à¤²à¥‹à¤‚ को बातिल बनाती है। इमाम ख़à¥à¤®à¥ˆà¤¨à¥€ ने सिरà¥à¤«à¤¼ ज़बानी नहीं बलà¥à¤•ि अमली तरबीयत की। इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬ से पहले जब आप चाहे क़à¥à¤® में रहे या जिला वतनी की ज़िनà¥à¤¦à¤—ी बसर कर रहे थे आप के घर वाले ईरान में ताग़ूती हà¥à¤•ूमत के ज़ेरे नज़र शदाà¤à¤¦ व मà¥à¤¶à¥à¤•िलात से दो चार रहे। इसी राह में आप के जवान साल फ़रज़नà¥à¤¦à¥‡ आयतà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¹ सयà¥à¤¯à¥‡à¤¦ मà¥à¤¸à¥à¤¤à¥žà¤¾ ख़à¥à¤®à¥ˆà¤¨à¥€ की शहादत हà¥à¤ˆ और उन तमाम मà¥à¤¶à¥à¤•िलात में आप से न सबà¥à¤° का दामन छूटा और न ही पाये सबात में लग़ज़िश आई।
जब कि दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ यह समठरहा था कि उन मà¥à¤¶à¥à¤•िलात के सामने आप शिकसà¥à¤¤ क़à¥à¤¬à¥‚ल कर के अपना रासà¥à¤¤à¤¾ बदल देंगे लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि था यह रासà¥à¤¤à¤¾ आप ने करबला से सीखा था कि जहां चिराग़ बà¥à¤à¤¨à¥‡ के बाद दोबारा जब जला तो इसकी रौशनी और बॠगई और हर दिन रौशनी में इज़ाफ़ा ही हो रहा है।
इमाम ख़à¥à¤®à¥ˆà¤¨à¥€ का यही ख़à¥à¤²à¥‚स, लिलà¥à¤²à¤¾à¤¹à¤¿à¤¯à¤¤ और आप का ‘‘फ़ना फ़िलà¥à¤²à¤¾à¤¹â€™â€™ होना था जिसने आप की शख़à¥à¤¸à¥€à¤¯à¤¤ को आफ़ाक़ी बना दिया। आपको अहसास ज़ात नहीं था बलà¥à¤•ि आप की सारी सई व कोशिश का महवर अलà¥à¤²à¤¾à¤¹ की इबादत और इसके बनà¥à¤¦à¥‹à¤‚ की खि़दमत थी और इस राह में आप ने न इंसानीयत दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨à¥‹à¤‚ की दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨à¥€ की परवाह की और न ही अपने ओहदे व मनसब की।
मौलाना सयà¥à¤¯à¤¦ सफी हैदर ने कहा कि दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के उमरा और हà¥à¤•ाम का मिज़ाज यह है कि वह अपनी तारीफ़ पर ख़à¥à¤¶ होते हैं, तारीफ़ करने वाले की तारीफ़ और चापलूस को मà¥à¥™à¥à¤²à¤¿à¤¸ समà¤à¤¤à¥‡ हैं लेकिन इमाम ख़à¥à¤®à¥ˆà¤¨à¥€ क़à¥à¤¦à¥à¤¦à¤¸à¤¾ सिरà¥à¤°à¤¹à¥‚ की ज़ात इससे मà¥à¥™à¥à¤¤à¤²à¤¿à¥ž थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आप अलवी हà¥à¤•ूमती रविश पर अमल पैरा थे लेहाज़ा बारहा फ़रमाया: ‘‘मà¥à¤à¥‡ रहबर के बजाये ख़ादिम कहा जाये तो वह मेरे लिठज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मà¥à¤¨à¤¾à¤¸à¤¿à¤¬ है।’’
वफ़ात से तक़रीबन दो बरस क़बà¥à¤² 29 सितमà¥à¤¬à¤° 1987 को आइमà¥à¤®à¤¾ जà¥à¤®à¤¾ के जलसे में जिसमें आप ख़à¥à¤¦ मौजूद थे फ़क़िठअहलेबैत अ0 स0 आयतà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¹ मिशकीनी रहमतà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¹ अलैहे ने अपने खि़ताब में आप का ‘‘आलमे तशयà¥à¤¯à¥‹ के अज़ीम मरजठतक़लीद, आलमे इसà¥à¤²à¤¾à¤® के अज़ीम रहबर और दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के कमज़ोरों के हामी और पनाहगाह’’ के उनà¥à¤µà¤¾à¤¨ से तज़किरह किया तो कोई और होता तो ख़à¥à¤¶ हो जाता लेकिन आप ने उन से गिला करते हà¥à¤ फ़रमाया के à¤à¤¸à¥€ बातों से परहेज़ करें जो मà¥à¤à¥‡ आगे बà¥à¤¨à¥‡ के बजाये (राह मअनवीयत में) पीछे ले जायें बलà¥à¤•ि दà¥à¤† करें कि हम इंसान बन जायें। ‘‘यानि ग़à¥à¤°à¥‚र व तकबà¥à¤¬à¥à¤° जैसी रूहानी और इख़à¥à¤²à¤¾à¥˜à¥€ बीमारियां हमारी रूह और अख़à¥à¤²à¤¾à¥˜ को अपने लपेटे में न ले सकें।
अगरचे आप की रेहलत को 33 बरस होने वाले हैं लेकिन आप की याद और ज़िकà¥à¤° आज à¤à¥€ वैसा ही है जैसा कि आप की ज़िनà¥à¤¦à¤—ी में था। मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¤ गà¥à¥›à¤°à¤¨à¥‡ के बावजूद आप के फ़à¥à¥˜à¤¦à¤¾à¤¨ का अहसास कम नहीं हà¥à¤† बलà¥à¤•ि और बà¥à¤¤à¤¾ ही जा रहा है, ख़à¥à¤¸à¥‚सन जब इसà¥à¤²à¤¾à¤® व इंसानीयत दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨à¥€ की आंधियां तेज़ होती हैं तो यह अहसास शिदà¥à¤¦à¤¤ इख़à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤° कर लेता है। लेकिन हम अपने करीम परवरदिगार का जितना à¤à¥€ शà¥à¤•à¥à¤° अदा करें कम है कि इसने क़ाà¤à¤¦à¥‡ इनà¥à¥˜à¤¿à¤²à¤¾à¤¬à¥‡ इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ आयतà¥à¤²à¥à¤²à¤¾-हिल उज़मा सयà¥à¤¯à¥‡à¤¦ अली ख़ामनाई दाम ज़िलà¥à¤²à¤¹à¥à¤² वारिफ़ की शकà¥à¤² में वह अज़ीम बिल बसीरत मà¥à¤¦à¤¬à¥à¤¬à¤¿à¤°, ज़ाहिद व मà¥à¤¤à¥à¤¤à¥˜à¥€, शà¥à¤œà¤¾à¤…, जहां दीदठरहबर अता किया है जो हर जहत से इस दौर का ख़à¥à¤®à¥ˆà¤¨à¥€ लगता है।
ज़रूरत है कि नसà¥à¤²à¥‡ हाज़िर इस अबक़री शख़à¥à¤¸à¥€à¤¯à¤¤ को पहचाने और इनकी तालीमात और अफ़कार पर ग़ौर करे, फ़िकà¥à¤° करे और उस पर अमल करे ताकि मà¥à¤¶à¥à¤•िलात में à¤à¥€ कामियाबी उसका मà¥à¥˜à¤¦à¥à¤¦à¤° बने। हक़ीक़ी इसà¥à¤²à¤¾à¤® और तशयà¥à¤¯à¥‹ से ख़à¥à¤¦ à¤à¥€ वाक़िफ़ और दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को à¤à¥€ वाक़िफ़ कराये। जिन अरबों ने इमाम ख़à¥à¤®à¥ˆà¤¨à¥€ को अपना आईडीयल समà¤à¤¾ वह आज मैदाने अमल में हैं। कम तादाद और बरà¥à¤¸à¥‹à¤‚ की पाबनà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के बावजूद दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ के सामने डटे हैं। लेकिन जो इस नेअमत से महरूम हैं वह इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤° के ग़à¥à¤²à¤¾à¤® और इनके आलाकार हैं।
अठहमारे अज़ीम रहबर ! आज आप का वजूदे ज़ाहिरा हमारे दरमियान नहीं लेकिन आपके अफ़कार हमारे रहनà¥à¤®à¤¾ हैं। आप की तालीमात हमारे लिठमशअले राह हैं, आपकी सीरत हमारे लिठरौशनी है और आप की आवाज़ हमारे दिलों की तक़वीयत।
अठबानिये निज़ामे इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ ! आप की बà¥à¤²à¤¨à¥à¤¦ रूह, अज़ीम शख़à¥à¤¸à¥€à¤¯à¤¤ हमें आज à¤à¥€ दरà¥à¤¸à¥‡ हà¥à¤°à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤ दे रही है।
हम अपने तमाम तर वजूद के साथ आप को खि़राज अक़ीदत पेश करते हैं और दà¥à¤† करते हैं कि हमें आप की राह पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये।
|