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मà¥à¤•दà¥à¤¦à¤¸ महीना रमजान में जकात का काफी महतà¥à¤µ है। माहे रमजान में जकात के रूप में दान देकर गरीबों व जरूरतमंदों की मदद की जाती है। दान के पैसे से वह ईद की खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ मनाते है। रमजान में à¤à¤• नेकी का सवाब 70 गà¥à¤¨à¤¾ हो जाता है। इसी कारण इस पाक महीने में मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ जकात व फितà¥à¤°à¤¾ के रूप में दान करते है। सालà¤à¤° में जमा की गई जायदाद का 40 वां हिसà¥à¤¸à¤¾ जकात के रूप में अदा करना फरà¥à¤œ है। इसà¥à¤²à¤¾à¤® की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° जकात अदा करने से जायदाद साफ-सà¥à¤¥à¤°à¥€ हो जाती है। बसपिटà¥à¤Ÿà¤¾ मजार के इमाम मौलाना मो.रफिकà¥à¤² कादरी बताते है कि साढ़े सात तोला सोना या साढ़े 52 तोला चांदी है सिरà¥à¤« वही जकात निकालने के दायरे में आते है। हदीस में लिखा है- अलà¥à¤²à¤¾à¤¹ के रसूल ने फरमाया है कि जकात न निकालने वाले की संपति अथवा समान सà¥à¤–ा व बरसात के मौसम में बरà¥à¤¬à¤¾à¤¦ हो जाती है। जबकि फितरा रमजान में की गई इबादत की कबूलियत के लिठनिकाला जाता है। इनमें दो किलो 45 गà¥à¤°à¤¾à¤® गेंहू के दाम के बराबर फितà¥à¤°à¤¾ में देने की परंपरा हैं। ईद की नमाज से पहले फितरा निकालने का नियम है। मौलाना रफीकà¥à¤² कादरी बताते है कि हदीस में अलà¥à¤²à¤¾à¤¹ के रसूल ने फरमाया है कि बंदा जो अमल इबादत रमजान शरीफ के महीने में करता है। उसकी इबादत जमीन व आसमान के बीच में लटकी रहती है। फितà¥à¤°à¤¾ अदा करने के बाद वह कबूल होती है।
जकात उन लोगो को दी जाती है, जो गरीब, जरूरतमंद, मà¥à¤¸à¤¾à¤«à¤¿à¤° व बेसहारा है। जकात अपने गरीब व जरूरतमंद रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ दी जा सकती है। इसमें असल और नसल को जकात जायज नहीं है। असल का अरà¥à¤¥ जिनसे जकात देने वाला पैदा हà¥à¤† और नसल का अरà¥à¤¥ जकात देने वाले के औलाद और उसके पोते नवासे है।
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