आग केवल जलाती नहीं रिश्ते जोड़ती है। शीत ऋतु की आग में जीवन होता, भाईचारा होता। शीत की गहराई मशीन नहीं प्रकृति बताती है। पहले सेंटीग्रेड नहीं था पर ठिठुरते पशु पक्षी ताप बता देते थे। बूढे बरगद को सब याद रहता था.. किसी का जन्म, किसी की मृत्यु तय करती, किस वर्ष शीत लहरी कितने दिन चली। शीत लहर आती लेकिन जिंदगी चलती रहती उसी शान से। यह शान थी आग। कोयल के बोलते समय ही अलाव जल जाते थे। धुएँ की चादर गाँव पर तन जाती, घने कुहरे से लड़ता धुआँ बस्ती का आकाश दीप था। ये केवल अलाव नहीं थे गाँव के सभागार थे प्रेम और भाईचारा थे। वहाँ जाति धर्म नहीं था, कोई बड़ा छोटा नहीं, किसी कै अलाव पर कोई बैठता। आग सबको समा लेती। राह चलते राहगीर भी दो घड़ी आग ताप लेते और इस बहाने हाल खबर बता देते। गाँव के समाचार पत्र थे अलाव! धूप निकलने तक सारी देश की खबरें मिल जाती । अलाव यूँ ही नहीं जलते थे उसकी भी प्रक्रिया थी। गाँव के इर्दगिर्द फैले झाड़झंखाड, ज्वार बाजरे की खेत में पड़ी गाँठे इस बहाने साफ हो जाते।
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